قــد
تقضــى
الشـباب
الا
قليلا
|
وتــولى
الهــوى
فصـبراً
جميلا
|
واسـتراحت
نفس
المحب
فما
تسمع
|
عــــذلاً
ولا
تعاصـــي
عـــذولا
|
واســتقرت
محــاجر
كــن
للـدم
|
ع
عقيقــاً
وكـان
فيهـا
سـيولا
|
غيــر
انــي
وان
تقضـى
غرامـي
|
واستعضــت
السـلو
منـه
بـديلا
|
لسـت
انسـى
في
ظلمه
نعماً
يذكر
|
هــن
الفــؤاد
ذكــراً
طــويلا
|
مـن
ليال
صحت
لنا
في
ربى
الزه
|
ر
وكــان
النسـيم
فيهـا
عليلا
|
وريــاض
كأنهــا
قطــع
الــوش
|
ي
تجــر
الغصـون
منهـا
ذيـولا
|
وورود
غـــارت
حيــاءَ
مــن
ال
|
غيــد
فحـاكت
خـدورها
تمـثيلا
|
وميـــاه
جـــرت
تخــاطب
حــص
|
باها
فيحكي
النسيم
ما
قد
قيلا
|
وطيــور
كأَنهــا
نــزل
الــوح
|
ي
عليهـــا
فرتلـــت
تــرتيلا
|
وغمــام
بكــى
دموعــاً
فاضـحت
|
فـي
كـؤوس
الازهـار
ثغراً
رتيلا
|
كـان
قطـراً
ثـم
استحال
الى
در
|
نظيــم
ولــم
يكــن
مســتحيلا
|
حـاك
منهـا
وشـي
الازاهـر
لمـا
|
حـاك
فيـه
سـيف
الـبروق
صقيلا
|
صــارم
ينحــر
انغمـام
ليغـدو
|
مـن
دمـاه
وجـه
الربيـع
غسيلا
|
رب
يــوم
قطعتــه
فــي
رباهـا
|
طــاب
فجــراً
وبكــرة
واصـيلا
|
حيــن
بـاكرته
علـى
ضـوء
وعـد
|
مــن
حـبيب
ومـا
بعثـت
رسـولا
|
صـادق
الحـب
منه
أغنى
عن
الرس
|
ل
واضــحى
بمــا
نــروم
كفيلا
|
فـاتت
تهتـدي
ولا
نـور
الا
الحب
|
ان
الغـــــرام
كــــان
دليلا
|
والتقينـا
فلـو
تـرى
ضمتي
ضعف
|
ووجـــد
ابصــرت
امــراً
جليلا
|
ثـم
لمنـا
كـذا
الـى
حيث
لا
نخ
|
شـــى
مقــالاً
ولا
نخــاف
مقيلا
|
واتخــذنا
مـن
العيـون
كؤوسـاً
|
وادرنــا
مــن
الحـديث
شـمولا
|
وبعثنــا
اللحـاظ
رسـلاً
فعـادت
|
حـــــاملات
دموعنــــا
اكليلا
|
فكتبنـــا
بهـــن
آيــات
حــب
|
نزلتهـــا
قلوبنــا
تنزيلفــا
|
لغـة
لـم
تقـرأَ
ولم
تبدي
فينا
|
وهيهـــات
بعــدنا
ان
تــزولا
|
وضـعتها
العيـون
مـن
عهد
حواء
|
وكــانت
لهــا
القلـوب
اصـولا
|
كلمــات
بســيطة
كلهــا
معنـى
|
ولا
تلتقـــي
لهـــا
تـــأويلا
|
لسـت
تلقـى
بهـن
نحـواً
ولا
صـر
|
فـــاً
ولا
عـــاملاً
ولا
معمــولا
|
محكمـات
الايـات
فـي
مهجـة
الص
|
ب
فلا
يبتغـــي
لهــا
تبــديلا
|
نقشـتها
عيـن
المهاة
على
القل
|
ب
فرددتهـــن
عنهـــا
فصــولا
|
ثـم
مـالت
يبـلُّ
اردانها
الدمع
|
كغصـــن
لاقــى
النســيم
بليلا
|
هـو
دمـع
لـدلال
فـي
مقلة
الحس
|
ن
يــــروِّي
غلا
ويـــذكي
غليلا
|
فقضـينا
هنـاك
امر
الهوى
العذ
|
ري
ومــا
كــان
امـره
مجهـولا
|
واطفنــا
بكعبــة
الحـب
لا
نـأ
|
لــو
طوافــاً
بهـا
ولا
تقـبيلا
|
وخلعنــا
العــذار
الا
عفافــاً
|
ونزعنـــا
الحيـــاء
الا
قليلا
|
وجــرت
بيننـا
واسـتغفر
اللَـه
|
امــور
تــدعو
الحكيـم
جهـولا
|
وغصـــون
تصــدُّ
منــا
فلا
تــق
|
در
فــي
صــدها
سـوى
ان
تميلا
|
وغــدير
يبـدي
النفـار
هـديراً
|
وحمــام
يبـدي
العتـاب
هـديلا
|
ونسـيم
لـم
يـدرِ
غيـر
الذي
يح
|
مــل
مـن
نشـرنا
وطـاب
حمـولا
|
وتـرى
الشـمس
اكمـدت
فهـي
صـف
|
راء
غيــور
تريـد
عنـا
أفـولا
|
فنهضـنا
وقـد
تركنا
بيوت
الله
|
و
مــن
بعــدنا
قفـاراً
طلـولا
|
وخرجنـــا
خـــروج
آدم
لكـــن
|
مـا
عصـينا
ولا
اتبعنا
الضلولا
|
كــان
مــا
كـان
ثـم
ولـى
فلا
|
تطلــب
لــه
جملـة
ولا
تفصـيلا
|
وعــد
اللَــه
للمحــبين
عفـواً
|
انـــه
كــان
وعــده
مســؤولا
|