لا
تعــذلنَّ
الــدهر
فــي
أحكـامهِ
|
واقصــر
عنـاك
فلسـت
مـن
حكـامهِ
|
لـو
كـان
ينفـع
فـي
الزمان
ملامه
|
لــم
تلـق
خلقـاً
قـط
مـن
لـوامه
|
مـن
راض
صـرف
الـدهر
ابصـر
طرفه
|
فــي
صــحوه
مـا
لا
يـرى
بمنـامه
|
يقضــي
فيظلـم
جـابرا
فـي
حكمـه
|
والكــل
مغلــوب
علــى
احكــامه
|
بتنــا
نعلــل
بالوصـال
نفوسـنا
|
مــن
باخــل
لــم
نـرج
رد
سـلامه
|
ويغرنــا
الامـل
الغـرور
بملتقـى
|
مــن
لا
يـراه
الطـرف
فـي
احلامـه
|
مــا
ازهـد
الانسـان
فـي
سـاعاته
|
واشـــد
صــبوته
الــى
اعــوامه
|
يلهـو
عـن
اليـوم
الـذي
هو
حاضر
|
فكــان
ذلــك
ليــس
مــن
ايـامه
|
وتـراه
يطمـع
فـي
البعيـد
كـأنه
|
قـد
نـال
فـي
كفيـه
فضـل
زمـامه
|
هيهــات
ليــس
العمــر
الا
سـاعة
|
حضــرت
وعنـد
اللَـه
علـم
تمـامه
|
مــالي
وللآمــال
ارقــب
غيمهــا
|
والعيـن
لـم
تظفـر
بغيـر
جهـامه
|
مـن
ليـس
يغتنـم
الـرذاذ
لشـربه
|
ولــى
ولــم
يطفـئ
غليـل
اوامـه
|
يــا
مــن
قنعــت
بكتبـه
متعللاً
|
كتعلــل
الســاري
بنجــم
ظلامــه
|
يشـتاق
طرفـي
منـك
بـدراً
طالعـاً
|
والبعــد
بيــن
غرامــه
ومرامـه
|
حـال
النـوى
دون
العيان
ولم
تحل
|
فــي
الصـب
بيـن
فـؤاده
وهيـامه
|
دنـــف
يرنحـــه
هــواك
صــبابة
|
فكـــأنه
ثمـــل
بســكر
مــدامه
|
يشكو
البعاد
الى
الزمان
ولم
اجد
|
متظلمـــاً
يشـــكو
الــى
ظلامــه
|
ان
الســقيم
اذا
تعــذر
بــروءُه
|
يجلا
لمــا
قـد
كـان
اصـل
سـقامه
|
يــا
نحــاً
عينــي
برؤيــة
خطـه
|
مـا
فـات
اذنـي
مـن
سـماع
كلامـه
|
ان
كـان
قـد
عـز
اللقـاء
باسـره
|
فــابعث
بخطـك
فهـو
مـن
اقسـامه
|