أسـير
بـدار
الظلـم
أعيـاه
آسره
|
أمـا
من
فتى
من
الناس
حرٍّ
يناصره
|
أفـي
النـاس
أحـراراً
وفيهم
أحبة
|
فمـا
لأخيهـم
لا
يـرى
مـن
يـؤازره
|
عفـاء
علـى
الـزوراء
بعد
جميلها
|
إذا
ربعـه
المعمـور
أخلـق
دائره
|
ألـمّ
بـه
خطـب
مـن
الجـور
فـادح
|
كمـا
انقضّ
باز
أقتم
الريش
كاسره
|
تنـادوا
بـه
والضـغن
ملء
قلوبهم
|
وقـالوا
وحيـدٌ
مـا
لنا
لا
نكاثره
|
فـإن
نكفـه
نُكـف
الشـديد
مراسـه
|
ومــا
بعـده
فينـا
عـدو
نحـاذره
|
فطــافوا
بـه
مـن
خلفـه
وأمـامه
|
كما
طاف
بعد
المحل
بالربع
زائره
|
أحيـن
هـوى
عبـد
الحميـد
بعرشـه
|
وغبّـره
بالـذمّ
فـي
النـاس
غابره
|
يقــوم
رجــال
يســتعيدون
عهـده
|
وفينــا
نيــازي
قـائم
وعسـاكره
|
ألا
قـد
بغـت
هـذي
العمائم
بغيها
|
فـدارت
على
القوم
الكرام
دوائره
|
ألا
هـل
نرجي
العدل
والعدل
دوننا
|
مــــوارده
محميـــة
ومصـــادره
|
تجلـى
زمانـاً
ثـم
لـم
تبتسم
لنا
|
أوائلــه
حــتى
استسـرّت
أواخـره
|
بـــأيّ
كتـــاب
أم
بأيــة
ســنة
|
يجـازى
علـى
قـول
الصواب
معاشره
|
بـــأي
كتـــاب
أم
بأيــة
ســنة
|
يريـدون
طـي
الحـق
إن
قام
ناشره
|
سـلام
علـى
الأوطـان
مـن
بعد
مأمل
|
ذوي
وأرق
الإقبــال
منـه
وثـامره
|
سـلام
علىالـدنيا
سـلام
على
الورى
|
سـلام
علـى
العهـد
الذي
قلّ
شاكره
|
سـنبكي
على
العيش
الذي
كان
غرّنا
|
وقـد
سـاء
ماضـيه
ومـا
سر
حاضره
|
سـقى
اللـه
أجـداثاً
علت
شهداءها
|
بكـل
مُلـث
الـودق
نهمـي
مـواطره
|
قضـوا
نحـت
أسـوار
الحصـار
حمّية
|
ولـم
تغـن
عن
عبد
الحميد
دساكره
|
فـإن
يـك
بالـدرويش
قـد
زل
جـدّه
|
فهــذا
عبيـد
اللـه
حلّـق
طـائره
|
أقـام
علـى
الأطلال
كـالبوم
ناعياً
|
يبشــر
بـالتخريب
سـاءت
بشـائره
|
فأمــا
قضـى
فيكـم
جميـل
بحسـرة
|
ســتبقى
عليكــم
شـاهدات
مـآثره
|
وإن
تحجبـوا
مـن
فضـله
كـلّ
باهر
|
فليـس
ضـياء
الشـمس
يحجـب
باهره
|
أخــي
وفجـاج
الأرض
بينـي
وبينـه
|
أعيــذك
مــن
هـم
تـبيت
تسـاوره
|
أعيــذك
م
وجــد
يضــيفك
نـازلاً
|
وأهـوال
ليـل
مظلـم
أنـت
سـاهره
|
توقــف
فــي
ظلمـائه
غيـر
متجـلٍ
|
كــواكبه
تســطو
عليهـا
ديـاجره
|
تشـوّفك
الـبيت
الـذي
كنـت
بـدره
|
لقـد
أظلمـت
حزنـاً
عليـك
مقاصره
|
واصـبح
زاهـي
الـروض
بعدك
ذاوياً
|
ونــاح
علـى
دوحـاته
لـك
طـائره
|
فـإن
تظلمـوا
فيكـم
جميلاً
لغايـة
|
فــإن
جميلاً
ليــس
بغفــل
ثـائره
|
وإن
فريـق
الظلـم
إن
طـال
ظلمـه
|
سنمشــي
إليـه
بالسـيوف
نبـادره
|