يـا
نُسـيمات
الصـبا
حيّي
الحما
|
وربـــوع
المعلـــم
المــؤتنسِ
|
ثــم
حيــي
حـي
صـحبي
الكرمـا
|
خيــر
قــومٍ
فُــديوا
بــالانفس
|
مغنمــي
مغنـى
بـه
لـذ
الغنـا
|
مــن
مغــنٍ
اغيــد
غــانٍ
اغـنْ
|
حيـث
مـا
أحبـابي
بيمـنٍ
أمنـا
|
جـلّ
من
في
ذا
المنا
والفضل
مَن
|
فهــم
فــي
رغــد
عيــش
وهنـا
|
وهُنــا
مضــى
هـواهم
فـي
وهـن
|
يهــرق
الــدمع
دمــاً
منسـجما
|
مــن
جفـونٍ
ترعـى
نجـم
الغلـس
|
يشــتهي
طيــب
لقــاهم
مثلمـا
|
يشـــتهي
زورة
بيــت
المقــدسِ
|
اســروا
منــي
فــوادي
وسـروا
|
ودعــوني
ســاهر
الطــرف
قلـقْ
|
عقلــوا
العقـل
وللجسـم
بـروا
|
بالجفـا
مـذ
طلقـوا
الدمع
طلق
|
لـو
تـرى
مـذ
نفـروا
كيف
فروا
|
كبــداً
بــالحب
بـاتت
تحـت
رق
|
قيـــدوني
واقـــادوا
ضـــرماّ
|
فــي
الحشــا
متقــداً
كـالقبسِ
|
ودعـــوني
ودعـــوني
عنـــدما
|
ودعـــوني
كــالرهين
المحبــسِ
|
نصـب
عينـي
حسـنهم
ذاك
السـني
|
كـف
عنـه
اللـه
الحـاظ
العـدو
|
أنـــا
مـــن
لســت
المنثنــي
|
عـن
هـواهم
إن
دنـوا
أو
بعدوا
|
أو
عــدوني
و
عـدوا
عـن
سـكني
|
ليتهــم
لــي
بـالتلاقي
وعـدوا
|
مــا
كفـى
أن
لا
يراعـوا
ذممـا
|
لمحـــب
ليـــس
للعهــد
نســي
|
بلبلــوا
البـال
ببلبـال
بمـا
|
أورثــوني
مــن
وبــال
الهجـس
|
بــــابي
دار
دمشـــق
وصـــفا
|
عيشـها
فـي
ظـل
واديها
النزيه
|
درة
كـــل
بهـــا
مــن
وصــفا
|
وغــدا
فـي
حيـرةٍ
منهـا
وتيـهْ
|
كلَّمـــن
مثّلهــا
مــا
انصــفا
|
مـا
لها
في
حسنها
السامي
شبيه
|
كــم
يقيســون
بقســيون
ومــا
|
يــدرك
المقيــاس
مــن
مهنـدسِ
|
اربــت
ربوتهــا
الحــدّ
فمــا
|
نــال
منهــا
اربــاً
مـن
يقـس
|
فهـي
الشـام
الـتي
مـن
سـامها
|
بـات
فـي
أوصـافها
مـدهى
ذهول
|
شــامةً
قـد
أدهشـت
مـن
شـامها
|
فـوق
خـد
الكـون
تسـبي
للعقول
|
جنــة
الأرض
لمــن
قــد
رامهـا
|
كـم
بهـا
مـن
كـوثرٍ
عـذب
يجول
|
وبنوهـا
الحـور
تحكـي
الانجمـا
|
كــم
بهـم
مـن
كـل
ظـبي
مـؤنسِ
|
يرتقــي
مــا
بيـن
جنـاتٍ
ومـا
|
راتــع
بيــن
الجـواري
الكنـسِ
|
صــحت
لمــا
إن
تبــدى
وســعى
|
بكميــتٍ
بــك
ميـت
الحـب
عـاش
|
يــا
هلالا
بــاهراً
مــذ
طلعــا
|
راح
بـدر
التـم
منـه
بانـدهاش
|
يجلــو
بكـراً
كـم
عـذارٍ
خُلعـا
|
فـي
هواهـا
فاغنموهـا
يا
عطاش
|
خمــرة
راقـت
صـفت
تحكـي
لَمـا
|
ثغــر
ســاقيها
الشـهيّ
الالعـسِ
|
فهـو
بـدرُ
وهـي
شـمسُ
مـن
سـما
|
وجنــتيه
الحمـر
بـاتت
تكتسـي
|
ســـحر
اللـــب
بطــرف
فــاتر
|
ازرى
أهل
القسي
في
رشق
السهام
|
وســطا
فــي
ســيف
لحـظ
بـاتر
|
وبقـــدّ
خيزرانـــيّ
القـــوام
|
هــد
منـي
طـود
عمـري
العـامر
|
ودعــا
عــروة
عزمـي
بانفصـام
|
كــم
سـبى
مـن
ذي
خمـار
ورمـى
|
فـي
الهـوى
مـن
أسـد
بـل
ريـسِ
|
وتــولى
مالكــا
مــذ
أرغمــا
|
كـــل
قـــرم
عنـــتريّ
عبـــس
|
حبــذا
حمــص
ومـا
أبـدت
لنـا
|
مـن
هلالٍ
ضـاء
فـي
أفـق
الوجود
|
المعــيّ
بــاهر
بــاهي
السـنا
|
لــوذعيّ
فــاق
فـي
بـذل
وجـود
|
فـرع
روض
الأدب
الزاكـي
الثنـا
|
نعــم
حــرُ
هــو
للــه
عبــود
|
رب
حــزم
وحجــى
كــم
احكمــا
|
مــن
ذ
كــا
عــرفٍ
وعلـم
نفـس
|
بــات
ســحبان
لــديه
ابكمــا
|
وكــذا
قــسّ
غــدا
فــي
خــرس
|
كــم
تبـاهت
درر
البحـري
علـى
|
كــل
ذي
نظــم
بــديع
ونثــار
|
وشـدت
مـن
فـوق
أعلا
الصـحف
لا
|
ينبـت
الـدرَّ
السـني
الا
البحار
|
زمـــر
الكتــاب
طــرّا
والملا
|
مـن
اولي
الألباب
توليه
الوقار
|
كــم
تــراه
جاذبــاً
إن
رقمـا
|
معــــدن
الأرواح
كــــالمغنطسِ
|
بـل
وكـم
يسـبي
عقـولاً
حيـن
ما
|
يظهــر
الآيــات
فــوق
الطــرس
|
ملتقــى
جبريــل
للقلــب
جـبر
|
خيــر
خــل
صـان
عهـدي
ورعـاه
|
مفــرد
همــت
بــه
دون
البشـر
|
مــا
احيلا
كلمـا
بالبشـر
فـاه
|
يــا
لـه
حـرأًّ
حريـاًّ
قـد
نشـر
|
فـوق
أربـاب
النهـى
عالي
لواه
|
عمــه
حســن
كمــال
قــد
نمـا
|
فيــه
مـن
طيـب
أصـول
المغـرسِ
|
وفــوادي
الخـال
أضـحى
مغرمـا
|
فـي
هـوى
ذاك
الشـقيق
المحـرسِ
|
مخــزن
الحــب
فـوادي
والحشـا
|
كـم
بـه
قايمـةُ
لـي
مـن
شـجون
|
وحــبيب
القلـب
كـم
قـد
نقشـا
|
راقمـا
فيـه
علـى
الصـبّ
ديـون
|
مـن
راى
الميـزان
في
كف
الرشى
|
كيــف
لا
تســحره
تلـك
العيـون
|
اغيــد
إن
بعتــه
الـروح
لمـا
|
كنــت
فـي
بيعـي
لـه
بـالمبخسِ
|
حيـــث
ربحــى
حبــه
لا
جّرّمــا
|
وهـــواه
رأس
مـــال
المفلــس
|
كـم
ترانـي
راصـداً
ركـب
النوى
|
والكرى
لم
يبغ
في
جفني
البيات
|
وعلـى
منـوال
ذا
دهـري
انطـوى
|
ومضـى
العمـر
سـدى
منـي
وفـات
|
وغزالـي
حـاك
لـي
ثـوب
الجـوى
|
وغزالــي
بــالعيون
الغــازلات
|
حــاكى
بـدراً
بسـما
مـذ
بسـما
|
وتجلــــى
طالعـــاً
بـــالاطلسِ
|
رشــأُ
كــم
بـات
يرمـي
اسـهما
|
فــي
فــؤاد
الضـيغم
المفـترس
|
كيــف
لا
امســي
كيعقــوب
وقـد
|
غــاب
عــن
نـور
عيـوني
يوسـفُ
|
وباحشــائي
لظــى
الشـوق
وقـد
|
وجفــوني
مــذ
جفــاني
ترعــف
|
كــم
يشــا
ســبك
فـوادٍ
متقـد
|
ليّــــن
ابريــــزه
لا
يقصـــف
|
حكّــه
الــدهر
فالفــاه
كمــا
|
يبتغيـــه
ســالماً
مــن
دنــسٍ
|
ينجلــى
لونــاّ
ولينــا
كلمـا
|
طرقتــه
أيــدي
الـبين
القسـي
|
يـــا
ليــالٍ
كــبروق
أومضــت
|
ومضـت
بـالانس
مـع
خيـر
الصحاب
|
نقضــت
عهــد
عهــودي
وانقضـت
|
فقضـت
روحـي
بهـا
والجسـم
ذاب
|
ليــت
لــو
أعيـن
دهـري
غمضـت
|
عـن
صـفا
عيشي
وذاك
السهم
خاب
|
وايتلافـــي
دام
لــي
منتظمــا
|
فــي
سـنا
أقمـار
ذاك
المجلـسِ
|
وبميخائيـــل
خيـــر
النــدما
|
طــال
لـي
انسـي
بصـفو
الاكـوس
|
وبروحـــي
بــارع
قــد
جمعــا
|
مفـردات
الحسـن
فيـه
بالتمـام
|
ولقلـــبي
بالتجـــافي
بضــعا
|
وكـوى
احشـاي
فـي
نـار
الهيام
|
ليــت
لــو
رقّ
لصــبّ
قـد
سـعى
|
فـي
هـواه
فـوق
قـانون
الغرام
|
ليـس
بعـد
الياس
نفعُ
في
الحمى
|
فـدواءي
قمـع
ذا
الـبين
المسي
|
وحيـــاتي
أن
حبيـــبي
حكمــا
|
بــالتلاقي
لفــتى
فيــه
أســى
|
وكحيــل
الطــرف
جفنــي
بعـده
|
بــات
مكحـولاّ
بأميـال
السـهاد
|
صـــدّ
عنـــي
فضــناني
بعــده
|
وبــه
قـد
بـتّ
مشـغول
الفـؤاد
|
خــافقُ
فــوق
المعــالي
بنـده
|
ناشـرُ
عـرف
الثنـا
فـي
كل
ناد
|
إن
غشــا
ديــوان
شـرع
أفحمـا
|
كـــل
نحريـــر
بــه
ذي
نفــس
|
وإذا
مــا
بــتَّ
رايــا
احكمـا
|
حــل
فــاجي
كــل
أمــر
ملبـس
|
يـا
رعـاة
الود
والعهد
القديم
|
يـا
بـدوراً
في
المباهي
أشرقوا
|
يـا
اهيل
الفضل
والجود
العميم
|
كــم
تبــاهت
فـي
سـناكم
جلـق
|
أعـرب
الـترك
بكـم
مـدحاّ
نظيم
|
ونقـــولا
فــي
هــواكم
يصــدق
|
لــم
يـزل
فيكـم
شـجياً
مغرمـا
|
هايمــاً
فــي
عشـقكم
كـالمحتسِ
|
وبكــــم
مبتـــدياً
مختتمـــاً
|
طــال
مــا
فيـه
آثـار
النفَـسِ
|