تســمَّعي
يــا
حملــة
المســاجد
|
منـــي
شـــكيه
كلهــا
فوايــد
|
وبينهــا
إمــا
قليــل
بــوارد
|
تخلــى
الــذهن
الرقيــق
جامـد
|
قـال
مسجد
الصياد
قد
صرت
مهجور
|
مسـدود
مـن
كـل
الجهـات
بالدور
|
مفتـوح
لـي
القبلـى
وفج
الاشمور
|
وبــاب
يشــوح
ريـح
بيـت
زايـد
|
فـي
الصـيف
قـد
حل
الوقوف
صوحي
|
كــل
المســاجد
يســمعين
نـوحي
|
وان
شــي
مصـلى
جـا
يـرد
روحـي
|
ســاعه
ويحلــف
قـط
مـا
يعـاود
|
اشـتى
سـراج
مـن
عصـر
امـر
لازم
|
والا
سـمعت
النطـح
فـي
الـدعايم
|
وابصـرت
عـاثر
فـي
الظلام
قـايم
|
مــا
تدســع
إلا
فـوق
رأس
سـاجد
|
بـرد
المطاهير
قد
طلع
من
البير
|
مـن
يسـمع
الأصـوات
قال
هنا
كير
|
كــانون
فيهــا
لا
يـزال
تقريـر
|
فـي
كيـف
مـن
أنكـر
وقـال
بارد
|
وذا
فراشــي
قــد
طســى
ونطــع
|
وصــار
فيـه
قسـوه
وبـرد
مفجـع
|
لــو
يبـدلوه
حـتى
بلـق
وصـورع
|
أحسـن
مـن
البهمـه
وهـو
مشـادد
|
ما
قد
غووا
لي
في
الزمان
بحصره
|
وأصــل
شــكلي
مقــترن
بحمــره
|
كـم
لـي
إلـى
صـوح
القضاة
نظره
|
فــالكون
معمــور
والكلام
واحـد
|
عســاه
يســمح
لـي
ولـو
بفـرده
|
فلــي
مـن
الفـرش
الجديـد
مـده
|
إن
ش
شـــهامه
هــايله
ونجــده
|
فحــم
يرجــا
للكريــم
عوايــد
|
فحيـن
سـمع
قـارش
برقـو
الحـوض
|
أقبــل
مزيــن
بالسـيل
والحـوض
|
وقـال
أخـرج
فـوق
جربـة
الـروض
|
إن
كنــت
للأمـر
القـديم
معـاود
|
مـا
قـد
جـرى
لك
نصف
ما
جرى
لي
|
ولا
خطــــر
ذاك
الكلام
ببـــالي
|
إن
عـاد
معـك
بـاقي
بسـاط
بالي
|
فانــا
معـي
حصـره
كمـا
تشـاهد
|
لا
تكــثر
الكــداد
يــا
مغفــل
|
واقنــع
بمـا
عنـدك
ومـا
تحصـل
|
ولا
تــرا
نفســك
شــبيه
حنظــل
|
فـــإن
حنظــل
طــالعه
مســاعد
|
وانظـر
إلـى
مسـجد
معيـض
عنـدك
|
ومســجد
البهمــه
تــراه
نــدك
|
فلا
تعــــرض
للفضـــول
وحـــدك
|
إن
كنـت
مثلـي
فـي
الزمان
زاهد
|
فقـــوس
الصــياد
وشــل
راســه
|
واظهــر
شــواهد
فحلتـه
ويأسـه
|
وقـــد
تغيـــر
للكلام
حواســـه
|
وحشــر
اكمــامه
إلـى
السـواعد
|
خـرج
إلـى
بـاب
الحكيـم
ودقـدق
|
وقـــال
إدى
قصـــرتك
وإلحـــق
|
وقاســم
الســمان
زعــق
وأربـق
|
مـن
ذا
معـا
جـاري
خـرج
يجاهـد
|
والتفــت
القومـان
إلـى
شـراره
|
يعتـدوا
الفيـن
مـن
بنـي
زغاره
|
وأقبـل
لهـم
مسـجد
عصـر
بغـاره
|
رجــال
محكــومه
علــى
القـواع
|
فقـال
لـه
الصـياد
رزحـت
ظهـري
|
صــحيت
لــي
صــاحب
نشــد
أزري
|
قـال
الجـواري
يـا
صـديق
تجـري
|
قلــبي
يحبــك
والقلـوب
شـواهد
|
قـال
النزيلـي
مـا
مـع
الجماعة
|
وماســبب
ذا
الهــرج
واللكـاعه
|
بــالله
عليكـم
خلـوا
الخضـاعه
|
يـا
مسـجد
الصـياد
لـك
أم
قالد
|
مـا
قـد
معـك
يـا
شقب
والتحماس
|
تجلـب
إلـى
فـوقي
جميعـة
الناس
|
أوقـد
مـرادك
كيـتين
فـي
الرأس
|
وبعــدها
ثربــه
وســمن
جامــد
|
فقــال
لــه
الصــياد
لا
تذقـذق
|
وأنـت
مـن
أهـل
الثبـات
والصدق
|
اسـكت
مـن
التنبـال
لك
أم
قرقر
|
قـد
ثـارت
الفتنـه
وأنـت
راقـد
|
مــا
أنـت
ممـن
يحضـر
المحاضـر
|
أصــلك
محــل
الصــرف
للعسـاكر
|
ولا
يصــلوا
فيــك
غيــر
نــادر
|
إلا
إذا
صــلوا
علــى
القعايــد
|
قـد
سـرت
بيـن
الجـانبين
مذبذب
|
لا
مـن
بنـي
الحـارث
ولا
من
أرحب
|
ومــا
طلــع
لـك
تعـترض
وتغضـب
|
تجـــي
بهمــه
ناقصــه
تناقــد
|
واقبـل
أبـو
شـمله
بـزوب
هايـل
|
معـه
يجـي
خمسـين
مـن
القبايـل
|
اقبــل
منكــف
يســحب
الشــلايل
|
وقــال
مــن
ذا
يكشـف
الشـدايد
|
العـــزم
يــا
صــياد
لا
توقــف
|
لأن
فـــارش
قـــد
حمــى
ونكــف
|
الحــزم
عنـد
النايبـات
تكفكـف
|
لا
يســبوك
حرمــه
مـن
القواعـد
|
فســارت
القومــان
نحــو
عــدل
|
ويفعلــوا
فــوق
الجـراف
محفـل
|
فنــاس
يقويهــا
ونــاس
يكســل
|
نـاس
يشـتى
الهـده
ونـاس
يسادد
|
فحيـن
سـمع
قـارش
معـرة
الجيـش
|
رجــم
بصــوحه
واسـتفزه
الطيـش
|
وقـال
مسـكين
أيـش
حـالته
أيـش
|
لا
بــد
مـا
نشـفى
بـه
الحواسـد
|
وارسـل
إلـى
عدل
رسول
في
الحال
|
وقــال
بــادر
لـي
بـألف
رجـال
|
وألـف
مفـرس
ناهيـات
مـن
العال
|
ولا
تبـــورد
فالرســـول
قاصــد
|
فأقبــل
الصــعدى
علــى
مـراده
|
بــألف
رجــال
مـن
عـرب
وسـاده
|
يســير
ســير
النسـك
والعبـاده
|
لأن
أصـــله
مــن
قــديم
عابــد
|
وحيــن
وصـل
قـال
السـلام
تحيـه
|
وخـــبروني
مـــا
اول
القضــيه
|
قـالوا
لـه
انسـم
واستريح
شويه
|
حــتى
تجـي
جمعـة
بكيـل
واحـاش
|
فحيــن
دار
بــالأمر
قـام
قـايم
|
وحـــزوق
الأبـــواب
والــدعايم
|
واقبـل
طريـق
الحاضـرين
يـداكم
|
وقــال
مالـك
يـا
ذليلـي
قاعـد
|
هيــا
إلــى
الصـياد
بالمفـارس
|
مــا
ولفــه
للحــرب
والمتـارس
|
شـــانخربه
حـــتى
يصــير
دارس
|
يصــال
غبـاره
فـوق
بيـت
زايـد
|
وأقبـــل
الصـــياد
بالعســاكر
|
والحــرب
قـايم
والعجـاج
ثـاير
|
وفـي
الشـمال
باب
واليمين
عابر
|
وفــي
قليبــه
للقتــال
وقــاد
|
وكـــانت
الهــده
قبــال
عــدل
|
كليــن
يحــرض
عســكره
ويحمــل
|
وابسـرت
قـارش
قـد
رجـم
بمجـدل
|
فــودفت
فـي
القـوم
مثـل
راعـد
|
وراجــم
الصــياد
رجــم
هايــل
|
بالبــاب
واللالـه
صـلا
القبابـل
|
لـولا
ان
قـارش
كـان
قليل
مشايل
|
كســر
لــه
الأبــواب
والمـراود
|
فقـال
حنظـل
ما
الكلام
يا
اخوان
|
هــذي
العــداوه
كلهـا
تمجنـان
|
فخــبروني
مــا
جـرا
ومـا
كـان
|
فليـــس
مثلـــي
للكلام
ناقـــد
|
هــذي
الوقــائع
كلهــا
علامــه
|
فمـا
دريـت
هـو
سـخف
أو
رحـامه
|
ظنيــت
أو
قــد
قـامت
القيـامه
|
وانــا
معـاكم
فـي
مقـام
والـد
|
فابسـرت
قـارش
قـد
سـكت
وقوفـع
|
ودمـع
عينـه
سـالت
اربـع
اربـع
|
وأقبــل
الصــياد
وهــو
بيزمـع
|
وقــال
كـن
بيـن
الجميـع
شـاهد
|
أنــا
شـكيت
اليـوم
ضـعف
حـالي
|
ومــا
مــن
الأهـوال
قـد
جرالـي
|
ثـم
التفـت
حنظـل
وقـال
القارش
|
مــاذا
بــدالك
للقبيـح
تنـاقش
|
هــذا
طلــب
مـن
عاملـك
مفـارش
|
أو
هـو
طلـب
زوجيـن
بسـط
وفارد
|
واربـع
حصـير
والقـص
الى
زياده
|
هــذا
إذا
قــد
لاحــت
السـعاده
|
مقصـد
مـن
الفضـله
بغيـر
عـاده
|
مـا
هـو
بفقـره
فـي
الأنام
جاحد
|
ولــو
فعــل
تعريـف
معـي
وسـود
|
والا
توســـط
بـــالفقيه
محمــد
|
لا
كـان
يقـع
لـه
مقصـده
وأزيـد
|
فعامــل
الأوقــاف
لــه
مســاعد
|
فالشـيخ
فعـل
الخيـر
مـا
يفوته
|
أبــوه
محيــي
الـدين
لا
مميتـه
|
قـد
شـاع
عنـد
العـالمين
صـيته
|
يحــب
فعــل
الخيــر
والمقاصـد
|
وأنــت
يـا
قـارش
بغيـر
معقـول
|
مســجد
مضـيع
مـا
عليـك
معمـول
|
ومــن
توضـى
فيـك
يسـير
محمـول
|
ويخمــدوه
يـومين
فـي
المراقـد
|
وقــد
يقـع
لـك
فردتيـن
وحصـره
|
بغيــر
مضــرابه
ونــدف
قصــره
|
وإنمـــا
أصــلك
عــديم
فكــره
|
عقلــك
منقــص
والمــزاج
فاسـد
|
فقــال
قــارش
لا
عــدمت
مثلــك
|
مـن
ايـن
لـي
يـا
صنو
مثل
عقلك
|
مـا
زلـت
أشـكر
فـي
الأنام
فعلك
|
وكــم
وكــم
للشـيخ
مـن
محامـد
|
كـم
قـد
فـرش
مسـجد
نـتيف
مثلي
|
وكـــم
تفقــد
دامــرات
قبلــي
|
لكــن
مـا
احـد
ذكـره
مـن
اجـي
|
والا
فمــن
مثلــه
كريــم
ماجـد
|
وازكــى
صــلاتي
والســلام
سـرمد
|
تغشــى
المشـفع
فـي
الملا
محمـد
|
والآل
مــا
طيــر
الغصــون
غـرد
|
ومـا
بـدت
فـي
أفقهـا
الفراقـد
|