أكيـد
الليـالي
بالسـقوط
دهاهـا
|
أم
المجـد
مـن
سـوء
الفعال
قلاها
|
تنكــرت
الأفكــار
فيهــا
فعرفـت
|
فمــا
رضـخت
فانـدك
طـولُ
رجاهـا
|
فكـم
عنـدها
مـن
ألـف
باغ
ومسرف
|
يكيــدونها
كيــد
اللئام
عـداها
|
رموهـا
ومـا
مسـت
يـداها
جنايـة
|
بفعـــل
قبيــح
لا
يضــر
عــداها
|
وشــدوا
عليهـا
فـانثنت
وتوشـحت
|
بغبـن
الليـالي
وارتـدت
بعناهـا
|
لهــذا
تراهـا
فـي
نكـوص
بسـرعة
|
وتهـذي
ومـا
طيـف
الجنـون
أتاها
|
وقـالوا
جنـى
مـن
قد
تفرغ
للنهى
|
يــدافع
عنهـا
حيـن
غـاب
هـداها
|
وفـي
ظنهـم
أن
الحريـص
علـى
ولا
|
ئهــا
مغـرف
يبغـي
نـوال
نـداها
|
وعـاب
الهـوى
عيـب
التملق
للمنى
|
كمـا
عـاب
أهـل
البغي
ريح
شذاها
|
فمـا
انفـك
رب
السـعى
يلقـى
مـج
|
اهلا
تريـه
صـنوفا
من
أليم
جواها
|
وقـالت
جنـى
قـومي
فصارت
فضيحتي
|
يشـار
لهـا
قبـل
السـما
وسـناها
|
ألا
فـاعجبوا
أهـل
الجناية
برئوا
|
ونـالوا
علـى
رغـم
الشرائع
جاها
|
كـذا
تكـرم
الأيـام
مـن
ظل
عاملا
|
علـى
كيـد
من
يهدي
الورى
لبهاها
|
ومــا
هــي
إلا
شـهوة
قـد
تنـوعت
|
فجــاس
خلال
الخلــق
جيـش
هواهـا
|
فهـذا
يحـب
الـراح
واللهـو
عادة
|
يظــن
العلـى
فـي
خمـرة
فسـقاها
|
وهـذا
عتيـد
شـأنه
النهب
كم
أتى
|
علــى
أمــة
فابتزهــا
وســباها
|
وهـذا
شـغوف
فـي
المـواطن
كلهـا
|
بلا
همــــة
أو
خدمـــة
بعلاهـــا
|
وهــذا
علـى
درء
المفاسـد
عـاكف
|
يجيــد
لهـا
حربـا
ليـذهب
داهـا
|
وهــذا
إذا
عــدت
خصــائل
أمــة
|
يــرى
خيــرة
مـن
خيـرة
بـذراها
|
وهـذا
يغـض
العيـن
فـي
كـل
وجهة
|
عـن
النفـع
والإحسـان
عكـس
مناها
|
يسـارع
فـي
نسـج
المفاسـد
حسـبه
|
علـى
نفسـه
مـا
قـد
جنتـه
يداها
|
وإنـي
لمـن
وقـت
الفطـام
تيسـرت
|
لهــا
فكرتـي
مـن
حسـها
ونهاهـا
|
نشــأت
بهـا
طفلا
بـريئا
فأشـعلت
|
شــعوري
بنـوع
مـن
عـتيق
جواهـا
|
ويـوم
أتيـت
الـدار
طـالب
راحـة
|
فضــل
بهــا
عقلـي
لصـوت
نـداها
|
وطلـــق
حســي
هيئتــي
فتجــزأت
|
نواميســها
واستســلمت
لفناهــا
|
وألقـت
علـى
قلـبي
دروسـا
كأنها
|
ميــازيب
نــار
أرتمــي
بلظاهـا
|
ومــا
قمــت
إلا
عـن
وبـال
وبلـة
|
تضــمخ
منهــا
صــخرها
وفناهــا
|
تحيــر
ذهنــي
فالتمسـت
مؤانسـا
|
يعرفنــي
مــن
بــالزلال
ســقاها
|
أبــل
ثراهـا
سـيل
مـاء
سـمائها
|
أم
السـيل
مـن
عينـي
أبان
بكاها
|
سـألت
سـحاب
الجـو
فانسـل
هازئا
|
يفنــد
مــن
نفسـي
ظنـون
هواهـا
|
أفـي
حـر
هـذا
الصـيف
ينشر
قطره
|
ســحاب
شــتاء
غــاب
قـر
هواهـا
|
غريـب
إذا
دمعـي
ومـا
كنت
عاقلا
|
وقـد
كـان
عقلـي
شـذ
حيـن
أتاها
|
ألا
عجبــا
كيــف
الــدموع
بشـدة
|
تســيل
وعينــي
لا
تكــاد
تراهـا
|
ومـا
ذاك
عـن
سـوء
أصـاب
جفونها
|
ولكــن
مصــابي
حـال
دون
سـناها
|
ففضــلا
علـى
شـغفي
بمجـد
أيمـتي
|
أكابــد
محنــات
الصــبا
وبلاهـا
|
إذا
جـل
مـن
يجثـو
أمام
مصاب
ال
|
حيــاة
فــإني
قـد
لثمـت
رداهـا
|
لـك
الحمـد
يا
مولى
الخلائق
شرفت
|
نفــوس
تلقــت
ضــعفها
لقواهــا
|
جعلـت
هـداها
فـي
البلاد
إذا
نما
|
بلاد
بهــا
يبــدو
جمــال
هـداها
|
ومــا
أوجــه
الأيــام
إلا
عـوابس
|
لئلا
تــرى
نفــس
تحــوز
رضــاها
|
فحســبي
عظيــم
لا
ينــال
فــإنه
|
إذا
ضــاعف
الآمــال
تــم
فناهـا
|
وإن
نلـت
يومـا
منـه
فضـل
عناية
|
أكـن
مهبطـا
سـعي
العـذول
عداها
|
يلومــونني
عـن
وقفـه
أو
مواقـف
|
نــدبت
بهـا
ذكـرى
حمـاة
حماهـا
|
يقولــون
لا
تبــذل
حياتـك
دفعـة
|
سـدى
فـاتئد
واعـط
الحياة
مناها
|
يقولــون
لا
تحــزن
طـويلا
فإننـا
|
لفــي
راحـة
مـن
نـدبها
وبكاهـا
|
ألـم
يعلمـوا
أنـي
ملـول
لراحـة
|
أعــود
بهـا
صـفر
اليـدين
خلاهـا
|
ألـم
يعلمـوا
أن
المعيشة
إن
حلت
|
تكــن
فتنـة
يخشـى
الأريـب
يلاهـا
|
أيـا
قـوم
مـا
ذقتـم
حلاوة
حبهـا
|
ومــا
مسـكم
يومـا
أليـم
جواهـا
|
وقـد
أعـرب
الأعـراض
عنكـم
بأنكم
|
تريــدون
موتــا
لا
حيـاة
وراهـا
|
أيـا
قـوم
مـا
تحلو
لقلبي
حياته
|
وقــد
دوخ
السـمحاء
هـول
فناهـا
|
بكـائي
عليها
لا
على
الخل
والحمى
|
وحزنــي
عليهــا
لا
أريـد
سـواها
|
أضـيعت
فضـاع
المجد
منا
ولم
نكن
|
شــدادا
إذا
هـم
القضـاء
لقاهـا
|
أقـام
الرسـول
الهاشـمي
صـروحها
|
وأوصــى
بــأن
لا
نــزدري
بعلاهـا
|
مقدســـة
ضـــمت
حيــاة
ورفعــة
|
وقــد
خلصــت
ممـا
يشـين
بهاهـا
|
أتـت
للـورى
بالمكرمـات
وخيرهـا
|
وحثــت
علــى
نيـل
العلا
وهـداها
|
وضـمت
شـعوبا
قـد
تنـاءت
لبعضها
|
وكـم
حـل
ظلـم
الظـالمين
عراهـا
|
وصــارت
تقاليـد
العقـول
حقيقـة
|
فلـم
يعتريهـا
الريـب
بعد
سناها
|
وصــارت
حيــاة
الاقـتران
سـعيدة
|
فضــمت
بخيــر
للفتــاة
فتاهــا
|
وفاضـت
علـوم
العـالمين
بفضـلها
|
علـى
الخلـق
فاهتموا
بطيب
شذاها
|
وصـانت
حقـوق
النـاس
دوما
فسرهم
|
نهاهـا
وكـان
السـعي
وفـق
نهاها
|
فمـا
خـاب
بعـد
القائمون
بأمرها
|
ولا
مـن
هـدوا
أن
يحتمـوا
بحماها
|
ولمــا
بــدت
غــراء
فنـد
منصـف
|
رأى
كــل
وهـم
سـاد
حـول
قراهـا
|
فلـم
يتبـع
الأهـواء
من
مال
فهمه
|
إلـى
محكمـات
الـذكر
حيـن
تلاهـا
|
وقــد
نشـرت
فـي
الأرض
دون
مبشـر
|
ولكــن
وضـوح
الحـق
كـان
لواهـا
|
ولمــا
غـدت
بيـت
اللئام
غريبـة
|
أهينــت
بعبـث
الخـائنين
فواهـا
|
رأوا
حظهـم
في
الإفك
فيها
فدلسوا
|
عليهــا
نعوتـا
كالجبـال
بناهـا
|
فآل
بها
الحزن
المديد
إلى
الهوا
|
ن
إذ
لـم
تجـد
شـهما
يدافع
داها
|
وضـاعت
حـدود
اللـه
دفعـة
هـاجم
|
وكــم
مـن
مليـك
عاقهـا
وجفاهـا
|
وكـم
مـن
حكيم
راغ
للنفس
والهوى
|
فمــزق
منهــا
حســنها
وبهاهــا
|
قضــى
وطــرا
ظنــا
بـأنه
محسـن
|
إليهـا
وكـم
ظـن
العقـول
دهاهـا
|
ولمـا
رأى
الغـرب
المسيحي
بؤسها
|
وأيــدي
الضـنا
مصـبوغة
بـدماها
|
تيقــن
أن
الشــرق
لا
شــك
سـاقط
|
فـوالي
الخطـو
يسـعى
لقطع
مداها
|
وكــانت
تعـاليم
المسـيح
تعـوقه
|
عـن
البحـث
في
معنى
العلى
فقلاها
|
ولم
يتبع
الإنجيل
في
الأمر
بالرضو
|
خ
للـذل
فاسـتدل
الحسـام
لقاهـا
|
ألا
فــانظروا
شـتان
بيـن
عـواقب
|
لنبــذ
تقاليــد
المســيح
وطــه
|
فأهـل
الأناجيل
ارتقوا
عند
نبذها
|
وحـط
بنـي
السـمحاء
نبـذ
هـداها
|
وعلـة
هـذا
الفـرق
تبـدو
بداهـة
|
وفــي
جـس
نبـض
الملـتين
نراهـا
|
ألا
يـا
بنـي
السـمحاء
هلا
شعرتمو
|
بـذي
الذلـة
الكـبرى
وحـر
لظاها
|
وهــل
ملـة
الإسـلام
ترضـى
بـذلكم
|
وقــد
أكرمــت
أســلافكم
بنهاهـا
|
جنيتـم
فعـوقبتم
وخنتـم
فـأبتمو
|
بهــا
ضــربة
نجلاء
حــم
قضــاها
|
مـتى
تفقهـوا
سـر
التقدم
والنهى
|
مـتى
تـدفعوا
شـر
المنـون
وداها
|
وفيكـم
كتـاب
الَلـه
لا
زال
ناطقا
|
كمـا
كـان
فـي
عهد
الهدى
بحجاها
|
يناشــدكم
أن
لا
تكونــوا
أذلــة
|
وكونـوا
شـدادا
ضـد
بغـي
عـداها
|
فيـا
ليـت
شـعري
هل
يصادف
سامعا
|
مطيعــا
يـرى
ذل
الحيـاة
بكاهـا
|
سـلام
علـى
السـمحاء
مـا
صح
ناصح
|
ســـلام
علــى
إصــلاحها
وهــداها
|