آيــة
الحســن
أننـي
أهـواك
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فصـــليني
وخففـــي
مســراك
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هــذه
مهجـتي
خـذيها
فراشـا
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لـك
إن
شـئتها
وعينـي
غطـاك
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أعلمــت
لـولاك
واللـه
يـدري
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مـا
عرفت
الهوى
ولا
كان
دأبي
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ولعمري
ما
أنت
في
الحسن
إلا
|
فتنــة
للأنــام
ســوّاك
ربـي
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فخــري
بكــل
صــب
إذا
مــا
|
لـك
يصبو
فالحسن
يصبي
ويسبي
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وجـــدير
بعاشــقيك
جميعــا
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لـو
ملكـت
قلـوبهم
مثل
قلبي
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غيـر
أنـي
رأيـت
مـا
لا
يراه
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عاشـق
منـك
فـي
سـبيل
هـواك
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ليـت
شـعري
مـاذا
يصـدك
عني
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والهـوى
مـا
بغير
وصلك
يقضي
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أجهلــت
شــؤونه
وهــي
فـرض
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أم
رفضـت
مـن
شـرعه
كـل
رفض
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أم
لأنـي
أذنبـت
ذنبـاً
وحاشى
|
فنقضــت
مــن
عهـدك
أي
نقـض
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أم
لان
العــذول
أغـراك
حـتى
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صـار
هجـري
فرضا
عليك
ورفضي
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وأنـا
الخضر
ذو
الحياة
ولكن
|
مــا
حيـاتي
إلا
بـورد
لمـاك
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حبـذا
لو
وصلتني
بعد
طول
ال
|
هجـر
فـالهجر
طال
فيه
عذابي
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وكشــفت
نقابــك
عــن
محيـاً
|
يخجـل
الشمس
من
وراء
النقاب
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ونشـرت
ليـل
العقـاص
سـتاراً
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واضـطجعت
معـي
ليـذهب
ما
بي
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وضــربت
عـن
العـواذل
صـفحا
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ومزجـت
كـأس
الهـوى
بالرضاب
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وجعلــت
طرفـي
عليـه
رقيبـا
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خيفــة
منــه
أن
يقبـل
فـاك
|
كيـف
يا
من
حويت
مختلفات
ال
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حسـن
عـذبتني
بنـار
الصـدود
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وسـفكت
دمـي
الحـرام
بماضـي
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اللحظ
عمداً
لا
ماضيات
الحدود
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وأراك
جحـــــدته
وعليــــه
|
حمـرة
الوجنـتين
بعـض
شهودي
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ولكــم
عاشــق
ومثلـي
قتيـل
|
فيـك
لا
فـي
ظبـاء
وادي
زرود
|
حيـث
أن
الظبـاء
ألحاظها
لم
|
تســتطع
قفـل
لحظـك
الفتـاك
|
أومـا
آن
أن
تحيـي
بليـل
ال
|
شـعر
كـي
لا
تراك
عين
الوشاة
|
وتجــودي
علــيّ
بعـد
ممـاتي
|
بحيــاتي
وأنــت
سـرّ
حيـاتي
|
فتخلــي
للرقــص
كفــا
بكـف
|
وتغنــي
بلحنــة
العاطفــات
|
وتسـلي
القلـوب
مـن
شـر
ناس
|
عبـدت
غيـر
ربهـا
فـي
الصلاة
|
وغـدت
عـن
حقوقنـا
فـي
سبات
|
ليـس
يلفـى
فيهـا
أقـل
حراك
|