الأبيات 74
إنما حلّ | |
بأهل الشام عار | |
أيّ عار | |
وهزيمة وخنوع | |
للعروبة وانكسار | |
هجم الفرس عليهم | |
والتتار | |
شتّتوا أهل البلاد | |
وسقوهم كاس ذلّ | |
وهزيمة واندثار | |
وتداعت أمم الشرّ عليهم | |
وأحالتهم ركاماً | |
و دمار | |
قتلوا الأطفال | |
شرّدوهم من صغار وكبار | |
هدموا الدور عليهم | |
والمساجد والكنائس | |
حولوها لرماد | |
لم يراعوا ذمما | |
واستباحوا كل | |
شيء، كل شبر من | |
ثراها | |
إنها مأساة | |
أهل شام | |
من صغار وكبار | |
شامنا الغالي | |
جنان وازدهار | |
ومدائن عابقات | |
بالفضيلة، وخيار | |
من خيار | |
هكذا أضحت يباباً | |
وخراباً ودمار | |
أمة العرب | |
شتاتا وغثاء | |
كغثاء السيل | |
لا نفع ولا حتى انتصار | |
هجم الفرس عليهم | |
والتتار | |
وأحالوهم ركاما | |
ورماداً ودمار | |
يا إلهي | |
نظرة منك | |
إليهم وأغثهم | |
بلغ السيل الزبى | |
وأصاب القوم | |
بؤس وهلاك ودمار | |
من لهم إلاّك | |
ناصر | |
فأغثهم وأعد | |
للأطفال بسمتهم | |
واكشف الغمة | |
عنهم | |
أنت رب الناس جمعا | |
أمرك السامي انتصار | |
إنما النصر من الله | |
قريبا | |
ولدى ربي القرار | |
لك نشكوا | |
ضعفنا | |
فالطف بنا | |
وأزل غمتهم | |
إنهم في حال | |
بؤس ودمار | |
وانهيار | |
فأغثهم يا إلهي | |
وأعد فرحتهم | |
واحفظ الأهل | |
وما تحوي الديار | |
إنما النصر | |
من الله قريبا | |
وغداً تشرق | |
شمس الخير | |
ويزول الشر عنهم | |
والدمار |