ســاق
بعـض
الظرفـاء
للقـدر
|
لاحتفـــال
حضـــرته
الأســـرُ
|
فـــي
مكــان
لــثري
ماجــد
|
كـــل
مـــدعو
لــه
يفتخــرُ
|
قـال
جـزت
الباب
مصحوبا
إلى
|
قاعــة
قــد
طوقتهـا
الحجـر
|
وعلــى
الأبـواب
أسـتار
بـدت
|
وبـدا
منهـا
الـذي
قد
ستروا
|
لـم
تَبِـن
منهـا
وجـوه
إنمـا
|
بـــان
قـــد
وأريــج
عطــر
|
وإذا
بــي
قــرب
سـتر
صـدفة
|
وعرانــي
رغـم
صـبري
الضـجر
|
مـن
جـدال
أشـغل
السـمع
إلى
|
أن
نـأى
عنـي
الغنـا
والوتر
|
فتنبهـــت
أخيـــرا
لحـــدي
|
ث
جــرى
خلفـي
وفيـه
العـبر
|
بيــن
بنـتين
وهـاك
نـص
مـا
|
قالتــاه
بعــد
مــا
اختصـر
|
قـالت
الصـغرى
على
ما
ارتئي
|
حيـث
فـي
الصـوت
لِسـِنٍ
مظهـرُ
|
ولعمــري
كـان
صـوتا
سـاحرا
|
كـدت
قبـل
الـراح
منـه
أسكر
|
انظـري
ميلاء
فـي
القـوم
فتى
|
فيــه
آيــات
البهـا
تنحصـر
|
رام
يخفــي
نفسـه
عنـا
وهـل
|
يختفــي
فــي
صـحو
جـو
قمـر
|
لـم
يعرنـا
نظـرة
من
قد
أضا
|
ع
شـعوري
مـن
جـوى
لـو
يشعر
|
انظــري
ميلاء
غصــنا
يانعـا
|
بيــن
ربــات
الهـوى
يهتصـر
|
ينظــر
القينـة
ذي
عـن
شـغف
|
وهــو
لـم
يـدر
بمـن
ينتظـر
|
لو
درى
ما
خلف
هذا
الستر
جا
|
ء
غليـــه
خاضـــعا
يعتــذر
|
عنـدها
قالت
لها
الكبرى
لقد
|
جِـــزتِ
حــدا
لا
ارى
يغتفــر
|
إن
يكـن
ما
بان
منك
المبتدا
|
ليـت
شـعري
مـا
يكـون
الخير
|
فـأقلعي
أختاه
عن
ذا
واحذري
|
فأجـــابت
لا
يفيــد
الحــذر
|
أنـا
لـم
أجهـل
وربي
من
أنا
|
إنمــا
الجهـل
لمـن
لا
يبصـر
|
هـذه
المـرآة
كـم
قـد
أعلنت
|
إن
لـي
فـي
الحسن
شيئاً
يذكر
|
وهــب
اللَـه
لـي
الحسـن
فـب
|
ت
ولـي
منـه
النصـيب
الأوفـر
|
لـو
فتحـت
السـتر
هـذا
عنوة
|
لــرأى
كيــف
يفــر
الجـؤذر
|
أيهــا
الضـارب
سـتراً
عبثـا
|
ليـس
بالسـتر
الهـوى
يسـتتر
|
تــم
هنيئاً
واثقــاً
منتصـرا
|
وســتدري
مــن
غــدا
ينتصـر
|
حـاجب
العذراء
تحت
الستر
هل
|
أنــت
تخشـى
أن
يراهـا
ذكـر
|
مــا
عليهـا
لـو
رآهـا
خطـر
|
بـل
عليهـا
لـو
رأتـه
الخطر
|
هــل
ســمعتم
برجـال
راسـلَت
|
هـم
حسـان
فـأبوا
واعتـذروا
|
لا
وربــي
بــل
رجـال
راسـلت
|
ذات
خـدر
فـي
هـوى
فاحتقروا
|
أمرتكـــم
وأطعتـــم
عــادة
|
وبــأمر
اللَـه
لـم
تـأتمروا
|
قصــة
جــاءت
لعمــري
عـبرة
|
للــذين
انتبهــوا
وادكـروا
|
عـادة
لـو
علـم
القـوم
بمـا
|
أحـدثته
في
العذارى
انذعروا
|
فـــإليكم
آي
شــعر
أنــذرت
|
يا
أولي
الألباب
منا
اعتبروا
|