قَـد
حملـت
نشـرك
يـا
معطـاره
|
صــباً
بنجــد
طيَّبــت
عــراره
|
ســرت
بريّــاك
فظــن
صــاحبي
|
قَــد
فَــضَّ
داريٌّ
لنــا
عطـاره
|
خمـرت
وَجهـاً
لـو
رأَتـه
لبسـت
|
شـمس
الضـحى
مـن
خجـلٍ
خمـاره
|
رأَت
نســاء
الحـي
بـرق
حـاجرٍ
|
يزجـى
الـى
خبـت
النقا
عشاره
|
حســبنه
خلــف
الـبيوت
ضـرماً
|
فرحــن
وهنــا
يقتبسـن
نـاره
|
زرَّ
علــى
السـحب
بنجـدٍ
جيبـه
|
وحـــلَّ
فـــي
تهامــةٍ
أَزراره
|
ياهــل
طرقــت
طنبــاً
لغلمـةٍ
|
تحـرس
فـي
نجـم
القنا
أَقماره
|
فبالخبــا
ريّاالشـباب
سـجفها
|
تمنــع
عنـه
قومهـا
مـن
زاره
|
تشـير
لـي
خلـف
القنـا
بمعصم
|
فعمتــه
قــد
فصــمت
ســواره
|
لَـو
ينتَضـي
موتورهم
من
جفنها
|
ســيفاً
لـرد
مـدركاً
أَو
تـاره
|
أَو
أَدركوا
في
الطعن
رمح
قدّها
|
عـافوا
القنا
واِعتقلوا
خطاره
|
احبــب
بليـل
ميَّـةٍ
وقـد
غـدا
|
يَقضـي
أَخـو
اللهو
بها
أَوطاره
|
يَسـتاف
طـوراً
فيـه
ورد
خـدها
|
وَتــــارة
يلثـــم
جلّنـــاره
|
حــتىّ
إِذا
كـف
الصـباح
لطمـت
|
وَجــه
الـدجي
ومزقـت
أَطمـاره
|
وَصــار
بالصــبح
كعبـد
محـرم
|
بـــات
يشــد
بالصــفا
أَزاره
|
أَرخـت
عـن
الواشي
لها
غدائراً
|
ســوداً
أَحــال
ليلهـا
نهـاره
|
وانصـرفت
تسـتاف
مـن
أردانها
|
لطيــم
مســك
يســحقون
فـاره
|
قلـت
اِسـتعرت
لحـظ
ظـبي
رامةٍ
|
قـالت
بهـا
لحظـي
هو
اِستعاره
|
يـا
من
رأَى
لي
بالكناس
ناشئاً
|
يعقــد
فــوق
بانــة
زنّــاره
|
عـــاقرني
ورديـــة
مازجهــا
|
خـداً
أَرى
فـي
كأسـها
احمراره
|
يـدير
كأسـاً
قـد
غـدت
تصـبغه
|
حمرتهــا
عــن
خـد
مـن
أَداره
|
علـى
ريـاض
حـاك
ريعان
الصبا
|
فيـــه
رداء
لبســـت
بهــاره
|
اعـرس
منهـا
النـور
فـي
مفّوف
|
كـانَت
دنـانير
الحيـا
نثـاره
|
ذو
عبــقٍ
كأَنَّمــا
قــد
عطـرت
|
نفحــة
عــرس
حســن
أَزهــاره
|
لاحَ
بنــاد
البشــر
منـه
قَمَـرٌ
|
قـال
الـورى
سـبحان
من
أَناره
|
بـورك
فـي
أُفـق
السماح
طالعاً
|
بــدر
نــدى
لا
نَختَشـي
سـراره
|
إِذا
تَصـــَدَّت
لنـــدى
بنــانه
|
أَجــرت
عبــاب
كــرم
تيــاره
|
يـا
رائدي
الأَفـراح
إِنَّ
غصـنها
|
أَينـع
قومـوا
فـاِجتَنوا
ثماره
|
بشــراكم
فــي
فرحـةٍ
لمثلهـا
|
محمــد
قــد
أَكـثر
اِستبشـاره
|
يـا
خيـر
زاكٍ
غرسـت
كف
العلا
|
مـن
قبـل
فـي
طينتهـا
نجـاره
|
قلــت
لمرتـاد
النـدى
مغلّسـاً
|
في
السير
يمم
في
الركاب
داره
|
حــيّ
بممـدود
الـرواق
أَغلبـا
|
يلبـس
عـن
شـد
الحبـا
وقـاره
|
لَــو
تَســتَطيع
هاشـم
لمجـدها
|
لفَّــت
علــى
رؤوســها
فخـاره
|
وَغلمـة
منـه
علـى
نـار
القرى
|
بــانت
تقـص
بالنـدى
أَخبـاره
|
فَمــا
دَجَــت
ليلـة
سـار
وهـم
|
لخابطيهـــا
يوقــدون
نــاره
|
يفـديك
سـبط
الراحـتين
ذويـد
|
قـد
قبضـت
مـن
لؤمهـا
ديناره
|
لَــو
كـان
ضـرع
ديمـة
بنـانه
|
مــا
بـلَّ
قسـبا
حـالبٌ
قطـاره
|
أَو
عصــرت
راحتــه
مـا
سـمحت
|
بقطــرة
يغســل
فيهــا
عـاره
|
تَقـول
لـي
فـي
مـدحكم
قرائحي
|
هَـذا
أَوان
الشـعر
يـا
مهياره
|
فَقــامَ
منــي
للثنــاء
أَفـوهٌ
|
يحكــم
فــي
مـديحكم
أَشـعاره
|
ســرت
لـه
مـن
نحـوكم
صـنائعٌ
|
نبهــن
بعــد
رقــدةٍ
افكـاره
|
مثــل
الحسـام
حـلَّ
فيـه
صـدأ
|
ثــم
القيــون
صــقلت
غـراره
|
يـا
مُستَشـاراً
يوم
أعوز
الورى
|
فيــه
حصـيف
الـرأي
مستشـاره
|
لَقَــد
بنـت
قومـك
بيـت
سـؤددٍ
|
أَضــحى
عليــك
مرخيـا
سـتاره
|
فاِشـتَركت
في
المجد
قدما
ونرى
|
عنــدك
يـا
واحـدها
انحصـاره
|
حملـت
عبـأ
منـه
لَـو
نـاء
بهِ
|
سـوى
الحسـين
لاشـتكى
أَوقـاره
|
فَــتى
سـرى
مـن
رأيـه
بكـوكب
|
لـو
سـاير
النجـم
غـدا
سيّاره
|
يا
من
به
قد
أَودع
الفضل
الَّذي
|
مـا
بلغـت
كـل
الـورى
معشاره
|
يضـم
منـك
الليـل
خيـر
ناسـك
|
عاقــد
فــي
خشــوعه
أَسـحاره
|
كَـم
ذي
لِسـانٍ
طـالع
عـن
شدقه
|
كالصــل
جــاء
نازعـا
وجـاره
|
إِذا
الكَلام
جــاش
يومـا
بحـره
|
قــال
سـواي
لـم
يعـم
غمـاره
|
يعقــده
بــالعي
منــك
فيصـل
|
أَضــحى
فنيــق
كلــم
هــداره
|
وَيَغتَــدي
لســانه
مــن
صـمته
|
ميتـا
يَـرى
فـي
فمـه
إِقبـاره
|
يـا
من
رأت
منه
بمضمار
العلا
|
ســبقا
فظنــت
تَقتَفـي
آثـاره
|
خلفـك
عجـزاً
عَـن
بلـوغ
سـابقٍ
|
إِلـى
العلا
لـن
تلحقـي
غبـاره
|
تقاصـــري
عــن
العلا
عــاجزةً
|
بوعـك
فيهـا
لـم
تطـل
أَشباره
|
أَدرك
مجـــد
قـــومه
موطــداً
|
موســى
فـاعلى
بعـدها
منـاره
|
مــا
اِنتسـبت
لقـومه
أَكرومـة
|
إِلّا
وزرَّ
فوقهــــا
أَطمــــاره
|
ظـلَّ
السـماح
خابطـا
عـن
مبركٍ
|
حـــتىّ
أَنــاخَ
بهــم
عشــاره
|
هـم
أَعتقـوا
رق
الزَمان
وغدوا
|
يَســتَعبِدون
بالنَــدى
أَحـراره
|
فأَســـروا
بمنّهـــم
طليقـــه
|
وأَطلقـــوا
بمنِّهـــم
أَســاره
|