أجـبْ
فالشـعب
داعيـه
دعاكـا
|
وأســقط
مـن
معـاليه
أخاكـا
|
وأجـزل
مـن
حباك
الملك
شكراً
|
فقـد
رحـم
البلاد
بمـا
حباكا
|
تنـزلْ
مـن
سـمائك
وأبدُ
فينا
|
ودع
أبصــارنا
هــذي
تراكـا
|
ألا
طـال
الحنيـن
إليـك
شوقاً
|
كفانـا
مـن
فراقـك
ما
كفاكا
|
ثلاثــون
انقضــت
وثلاث
أخـرى
|
بكـاء
الشـعب
فيها
من
بكاكا
|
وآواك
الزمــان
لــدارٍ
حـزن
|
يجمجــم
سـورها
عنـهُ
نـداكا
|
فكنــت
تحـس
مـن
بُعـد
ضـناهُ
|
وكـان
يحـس
مـن
بعـد
ضـناكا
|
وكنــت
وكـان
خطبكمـا
سـواء
|
رمـاهُ
المسـتبد
كمـا
رماكـا
|
ولـو
كنـت
الخـؤون
حظيت
منهُ
|
ولـو
كـان
الـوفيّ
رعى
أباكا
|
نقيضــك
شــيمةً
وأخـو
أصـلاً
|
بـراه
اللـه
ليـس
كما
براكا
|
عـزاء
أيهـا
النافي
الرعايا
|
ولا
تجــزع
فخــالقهم
نفاكـا
|
حرمـت
كـراك
أعوامـاً
طـوالاً
|
وليتـك
بعـد
ذا
تلقـى
كراكا
|
فمـا
أنـا
شامت
بك
حين
تُنكى
|
كمـن
شـمتوا
ولكـن
ذا
بذاكا
|
تفارقــك
الســعادة
لا
لعـود
|
وقـد
شـاعت
خطاهـا
في
خطاكا
|
فـدع
صـرحاً
أقمـت
بـه
زماناً
|
وقـل
يا
صرح
ليست
لمن
بناكا
|
سـتذكرني
طيـورك
حيـن
تشـدو
|
وتـذكر
خطرتـي
فيهـا
رباكـا
|
بلــى
سـيؤمّك
الأقـوام
بعـدي
|
وكنــتُ
حميـت
دونهـم
حماكـا
|
نعـم
عبد
الحميد
أندب
زماناً
|
تــولى
ليــس
يحمـدهُ
سـواكا
|
تــولى
بيــن
أبكــار
حسـان
|
تعلّــق
فـي
غـدائرها
نهاكـا
|
جعلـت
فـداءها
الدنيا
جميعاً
|
ومــذ
ملّكتهـا
جعلـت
فـداكا
|
وطـال
سـراك
في
ليل
التصابي
|
وقـد
أصـبحت
لـم
يحمد
سراكا
|
لمــن
ركـبٌ
أعـدّ
هنـاك
ليلاً
|
يصــفّر
للنــوى
هـذا
نواكـا
|
مكانـك
فيـه
ليـس
مكـان
ملك
|
ولكـن
أنـت
تحمـل
مـا
أتاكا
|
ســتعلم
منـهُ
أنّ
النفـي
مـرٌّ
|
كـذلك
كنـت
تنفـي
مـن
عصاكا
|
فمـا
نهـل
بمـاء
فـروق
يروي
|
وما
أروى
الدم
الجاري
صداكا
|
بربـك
هـل
علمـت
مجيـء
يـوم
|
تزفــك
فيــه
غاليـة
عـداكا
|
وهـل
أمّلـت
أنـك
سـوف
تمسـي
|
غـداء
معاشـر
كـانوا
غـداكا
|
ســتحيا
فــي
سـلانيك
زمانـاً
|
فتحسـد
فيـه
عـن
بعـد
أخاكا
|
وتعلــم
أنّ
ملكــاً
يرتضــيه
|
وليـت
بـه
ولكـن
ما
ارتضاكا
|
فـإن
غشـي
الكرم
جفنيك
ليلاً
|
وعــادك
تحــت
طيتـه
أسـاكا
|
تمثـل
فـي
المنـام
لديك
ناسٌ
|
نخبّــر
عــن
دمـائهم
يـداكا
|
رمــاهم
بـالأفول
دجـاك
لمـا
|
تبـدوا
كـالكواكب
فـي
دجـاك
|
سـقيت
الغيـث
يـا
مثوى
مراد
|
ودمعـي
قبـل
ذلـك
قـد
سقاكا
|
خلا
القصـران
مـا
بهمـا
مقيم
|
هنــا
ضــيف
وضـائفه
هناكـا
|