قــل
لمـن
مـال
عنـا
وملـوا
وصـلنا
|
هــل
لـذا
الميـل
غيـر
الملـل
شـان
|
يشـــهد
اللـــه
جــامنكم
لا
مننــا
|
بـــدع
هـــذا
الجفـــا
والتمحــان
|
بعـد
مـا
قـد
حلفتـوا
مائة
مره
لنا
|
مــا
تخونــوا
ولــو
كـان
مـا
كـان
|
ثــم
خنتــم
ومنتــم
بقـولتكم
لنـا
|
قــد
نكــث
فــي
عهــوده
وقـد
خـان
|
هكـــذا
كـــلُّ
مـــن
مـــل
اعتــذر
|
بالأباطيـــــل
ودور
لــــه
ســــبب
|
إحـــذروا
أحـــزم
الحــزم
الحــذر
|
فـــوت
مــا
ليــس
يــدرك
بــالطلب
|
لا
تـــبيعوا
بنـــا
بيـــع
الغــرر
|
مالنحــاس
فـي
القيـاس
مثـل
الـذهب
|
قــد
حلفنــا
ومــا
حــد
قـال
فجـر
|
مــا
لنــا
مــن
نظيــر
فيمـن
أحـب
|
مــن
تبــدل
بنـا
عنـد
ظنـه
مثلنـا
|
مـــا
يجـــد
مثلنــا
قــط
إنســان
|
قـل
مـا
تـذكر
كرونـا
بصـحبة
غيرنا
|
ذكرنـــا
دم
لمـــا
قـــات
ولهــان
|
تـذكروا
أيـام
مـرت
كأعيـاد
السنين
|
وليـــالي
قصـــار
كلهـــا
اســحار
|
فـي
غـرف
مشـرفه
مشـرقه
فـي
كل
حين
|
بلقـــاكم
علـــى
الطيـــب
الســار
|
مـا
طلبتـوه
جلبناه
بالغالي
الثمين
|
فـــي
ســلاكم
ولــو
نــدعس
النــار
|
مـا
لنـا
فـي
سـوانا
من
الدنيا
منى
|
إنمـــا
احنــا
جســد
فــي
روحــان
|
هــل
ســمعتم
بروحيــن
حلا
فـي
جسـد
|
أو
بجســـمين
قـــد
قامـــا
بــروح
|
مــــا
ســــمع
ذا
ولا
را
ذا
أحـــد
|
إنمــا
الــوالهه
مــن
عهــد
نــوح
|
أخــــبرت
أنــــه
للحــــب
حــــد
|
مــن
دخــل
فيـه
مسـيكين
قـد
يـروح
|
وكــذا
احنــا
علــى
حكــم
القــدر
|
قـــد
دخلنـــا
فشـــاهدنا
العجــب
|
حيــث
كنـا
لكـم
كلنـا
وأنتـم
لنـا
|
مثــل
مــا
احنـا
لكـم
عـدل
ميـزان
|
فــإذا
مـا
بقيتـم
علـى
مـا
بيننـا
|
كيـــف
نجـــزى
الإســاءه
بالاحســان
|
غير
من
اليوم
نقول
خرب
الله
ما
بنى
|
مــــن
هـــواكم
فلا
عـــد
نثنيـــه
|
شــا
نقطـع
حبـاله
ونفـرد
مـا
ثنـى
|
وبســــاطه
بمـــا
فيـــه
نطـــويه
|
ونقلــع
غروســه
علـى
شـي
قـد
جنـى
|
بعــد
طيبــه
وشـي
عـاد
جنـاه
فيـه
|
وإن
تـروا
ذكركـم
بعـد
ذا
في
شعرنا
|
لا
تظنـــــوه
تـــــذكار
أحــــزان
|
كيـــف
نــذكر
علــى
حكــم
النصــف
|
مـــن
نســانا
ونضــمر
لــه
ســؤال
|
غيـــر
نقــف
للهــوى
حثمــا
وقــف
|
وخــــذوها
قصـــيره
مـــن
طـــوال
|
وقضــى
الــدين
مــن
جنــس
الســلف
|
والمـــدين
بمـــا
كـــالَ
اســتكال
|
والجفـــا
مبـــدعه
منكـــم
صـــدر
|
عجــــبي
للجفـــا
م
غيـــر
ســـبب
|
لا
عجــب
مــن
تغيـر
طبـاع
أحبابنـا
|
التغيــــــــر
ملازم
للنســـــــان
|
وإذا
الأصــل
مختـلّ
مـن
وقـت
البنـا
|
كيــف
يثبــت
علــى
الأصــلِ
بُنيــان
|
مـن
بـدع
بـالغزل
فـي
أناشـيده
ختَم
|
بامتــــداحَ
المليــــكَ
المعظَّــــم
|
صـاحبَ
السـيف
سـيفَ
الخلافـهِ
والقلـم
|
والعنــــان
والســـنان
الملهـــذَم
|
قـائد
الجيـش
فـي
الفيش
خفاق
العلم
|
حيــــثُ
يقتـــل
ويأســـر
ويغنَـــم
|
فــارسَ
الخيـلِ
خضـابَ
أطـرافَ
القنـا
|
يــــومَ
لا
يخضـــُبِه
غيـــرُ
طعَّـــان
|
أحمــد
إن
قلـت
مـن
ذا
فـي
السـؤال
|
ليــــس
للجهـــلِ
بـــل
للإرتيـــاح
|
كيــف
يجهــل
قمــر
جنــحَ
الليــال
|
حيـــث
لا
غيـــم
أو
شــمس
الصــباح
|
نطقـــت
باســـمهِ
أفــواه
الرجــال
|
والصــــوارِم
وأطــــرَافَ
الرِّمـــاح
|
وملا
الســــمع
ذكــــره
والبصــــر
|
رؤيتــــه
والأيـــادي
مـــا
وهـــب
|
مـن
لـديهِ
المُنـا
والمنايـا
والغنى
|
والعنــــا
والمســـرات
والأحـــزان
|
للـــولى
المــوالي
وأولهــم
أنــا
|
والعـــدو
المعـــادي
الــذي
هــان
|