يـا
رسـول
الجمـال
فـي
كل
أرض
|
أرشـدينا
إذا
ضـللنا
السـبيلا
|
علمينــا
معنـى
الجمـال
فأنـا
|
مـا
عرفنـا
لـولاك
شـيئاً
جميلا
|
صــاغك
اللَـه
مـن
حنـان
ولطـف
|
فهبينـــا
ممــا
رزقــت
قليلا
|
يـا
حيـاة
القلـوب
من
لم
يلقن
|
منـك
درس
الحيـاة
عـاش
جهـولا
|
لا
تـزال
القلـوب
كالصـخر
حـتى
|
تملئيهـــا
تلطفـــاً
وقبــولا
|
أيـن
نفـس
لـولاك
لـم
تـك
قفرا
|
أي
دار
لــولاك
لــم
تــك
غيلا
|
فيـك
سـر
الجمـال
مـن
كـل
شيءٍ
|
فـــأميطي
لثامــك
المســدولا
|
مــا
كلفنــا
بـالورد
إلا
لانـا
|
قــد
رأينــا
لوجنتيـك
مـثيلا
|
أو
حفلنــا
بــالزهر
إلا
لانــا
|
قـــد
رأينــاك
رمتــه
إكليلا
|
كــم
عرفنــا
مـن
لـذة
ونعيـم
|
كــان
لــولاك
أمــره
مجهــولا
|
نعـم
النـاس
منـك
في
هذه
الدن
|
يـا
ولكـن
مـا
أنصـفوك
فـتيلا
|
أنـت
يا
بهجة
العيون
ومرعى
ال
|
قلــب
تمســين
للـدموع
مسـيلا
|
أنت
يا
زينة
الحياة
وأنس
الده
|
ر
تمســــين
للعنــــاء
دليلا
|
أنـت
أنشـودة
السـعادة
والبـؤ
|
س
أغنــى
بهـا
المـدى
تـرتيلا
|
لـو
أصـابوا
لعظمـوك
على
الرق
|
ق
وأولــوا
يمينــك
التقـبيلا
|
وتــدانت
قلــوبهم
لــك
عطفـا
|
وتحــــانت
رؤوســــهم
تبجيلا
|
أنـت
مـا
أنـت
بيننـا
غير
روض
|
نــترجى
بــه
النسـيم
العليلا
|
ذلــك
الـوجه
لـم
أصـادفه
إلا
|
رحـــت
عنــه
بهمــه
مشــغولا
|
لا
يسـر
العيـون
إن
تنظـر
للحس
|
ن
وقـد
بـات
فـي
الأسـار
دليلا
|
أنـت
لـم
تجد
لي
الضفائر
عجبا
|
أنــت
تبـدين
قيـدك
المجـدولا
|
أنـت
لـم
تلبسـي
سـوارك
حليـا
|
أنــت
تعنيـن
زنـدك
المغلـولا
|
تشــتكين
العنـاء
والأسـر
لكـن
|
يتحـــامى
لســانك
التــدليلا
|
آه
كــم
يظلــم
الفتـاة
أنـاس
|
يتناســـون
حقهــا
المبــذولا
|
حرموهــا
حريــة
العيــش
حـتى
|
لا
ترجـــى
لعيشـــها
تبــديلا
|
فهــي
مســلوبة
الإرادة
حســرى
|
ليــس
تــدري
لحالهــا
تعليلا
|
ألبسـوها
مـا
لا
تحـب
احتكامـا
|
وأروهــا
مــن
لا
تريــد
حليلا
|
تتلقـى
العنـاء
والعسـف
طوعـا
|
وتســوغ
العــذاب
والتضــليلا
|
أنــا
لا
أعــرف
الحضــارة
إلا
|
حيــث
تلقيـن
قيـدك
المـرزولا
|
أنــا
لا
أعــرف
الغضــارة
إلا
|
حيــث
تمســين
للنفــوس
دليلا
|
فانهضــي
للنهـى
فليـس
عجيبـا
|
أن
تصـوني
النهى
وتحي
العقولا
|