اللــه
أكــبر
فــزتُ
بالوصـالِ
|
ونلــت
مــا
أرجــوه
بالكمـالِ
|
مـن
وصـل
ليلـى
بغيـة
الرجـالِ
|
فقــد
أجـاب
الـرب
لـي
سـؤالي
|
فالحمــد
للـه
الجـواد
الأعظـم
|
الغـافر
الـزلات
ذي
العطا
الجم
|
فكــم
عفــى
ســبحانه
وأنعــم
|
مــن
غيـر
سـبقٍ
مـوجب
المنـالِ
|
مــن
حسـن
الظـن
بـرب
الأربـاب
|
ودام
عبــدا
قائمــاً
بــالآداب
|
وأدمــن
القــرع
ولازم
البــاب
|
نـال
المنـا
مـن
بهجـة
الجمال
|
قــل
للحســود
دم
علـى
هوانـك
|
بـالرغم
فـي
أهلـك
وفـي
مكانك
|
كــدرت
بــالبلوى
صـفا
زمانـك
|
وعشــت
حيــاً
طــالب
المحــال
|
فثــق
بربــك
راضــياً
بحكمــه
|
اللـه
أرحـم
بـالفتى
مـن
أمـه
|
ســلم
هــديت
واكتــف
بعلمــه
|
هــذا
مقــام
الصـفوة
الأبـدال
|
فـالرزق
فـي
حـق
الـورى
مقسوم
|
عنـــد
الإلــه
مقــدر
معلــوم
|
يـــأتي
لكــل
مــاله
مرســوم
|
ولـــم
يفتـــه
صــاحبٌ
بحــال
|
يـا
ويح
قومٍ
قد
أطالوا
التعبا
|
حرصـاً
لسـعي
مـالهم
قـد
كتبـا
|
فقـل
لهـم
إن
العنـا
والنصـبا
|
بعــد
المقــدر
شـيمة
الجهـال
|
دع
الهمـــوم
يــا
أخــي
وروح
|
قلبــك
وجسـمك
عـن
ونـا
مـبرح
|
فقــد
كفــاك
الــرب
ذا
فصـحح
|
عقـد
اليقيـن
بالـدليل
الجالي
|
واجهــد
هـديت
فـي
حصـول
زادك
|
مـن
هـذه
الـدنيا
إلـى
معـادك
|
تلقــى
هنــاك
ثمـرة
اجتهـادك
|
علـــى
نعيــمٍ
ومقــامٍ
عــالي
|
وليــس
يخفــى
أن
هـذه
الـدار
|
دار
البلا
دار
الفنـا
والاكـدار
|
قـد
عزفـت
عنهـا
نفـوس
الأخيار
|
لمــا
رأوهــا
عرضــة
الـزوال
|
فلا
يغـــرك
رونـــق
التلابيــس
|
مـن
الهـوى
والنفـس
جند
إبليس
|
فـبيئس
عبد
النفس
والهوى
بيئس
|
عقبـاه
فـي
الأخـرى
إلـى
وبـال
|
ولا
تضــيع
فــي
الفضـول
عمـرك
|
ودع
أمـور
النـاس
واصـلح
أمرك
|
ولا
تغـــالب
بــالحظوظ
دهــرك
|
وخــذ
صــلاحك
منــه
باحتيــال
|
ودار
كـــل
النــاس
بالمبــاح
|
ولا
تســـر
إلا
إلـــى
الصـــلاح
|
والصــمت
فيــه
غايـةُ
ارتيـاح
|
ومـا
السـلامة
غيـر
فـي
اعتزال
|
جهــد
اللـبيب
فـي
صـلاح
حـاله
|
مـــن
دينــه
ونفســه
ومــاله
|
ومــا
يجــر
النفـع
فـي
مـآله
|
فاجهــد
وكــد
النفــس
للمـآل
|
لا
تطلــب
الجـاه
فـإنه
الـداء
|
ومنبــــعٌ
للموبقـــات
جـــدا
|
ففـــر
منــه
تســترح
وتهــدا
|
علــى
دوام
الـوقت
نـاجٍ
سـالي
|
ايــاك
لا
تكــثر
مــن
الصـحاب
|
لا
ســيما
فــي
زمــن
ارتيــاب
|
فلا
يغــــرك
لامـــع
الســـراب
|
كــم
صــاحبٍ
صـار
عـدواً
قـالي
|
ولا
تخالــل
غيــر
مـن
يصـافيك
|
ولا
يخـــوك
ظـــاهرك
وخافيــك
|
وإن
تقمــه
فــي
مقـام
يكفيـك
|
علــى
كمــالٍ
أحســن
الخصــال
|
سـر
بالوسـط
فالنهـج
هذا
أعدل
|
إذ
ســالك
الطرفيـن
عـي
أخبـل
|
واقنــع
فهـذا
الكنـز
لا
يحصـل
|
إلا
لمــن
يسـمو
إلـى
المعـالي
|
وزع
لــك
الأوقــات
ينتظـم
لـك
|
حالـك
ويجمـع
فـي
الدوام
شملك
|
واسـلك
طريـق
الزهـد
نعم
مسلك
|
لطــــالب
العـــز
بلا
جـــدال
|
والخير
أجمع
في
اقتفا
الشريعه
|
فيــا
لــه
للفـوز
مـن
ذريعـه
|
ذا
سـير
مـن
سـاد
الورى
جميعه
|
صــلى
عليــه
اللـه
بـالتوالي
|
علـى
عـدد
طـش
المطـر
والأشجار
|
ومــا
نسـيم
هـب
وقـت
الأسـحار
|
مـع
آلـه
والصـحب
قـادة
أخيار
|
أكــرم
بهـم
مـن
سـادةٍ
مـوالي
|