أقــدّم
قبـل
القصـد
شـكرا
لمنعـم
|
علينـا
بمـا
أربـى
علـى
كـل
أنعم
|
علـى
عـزّ
هـذا
الدين
والملّة
التي
|
لحقتهــا
فــازت
بفضــل
التقــدّم
|
وأتبعــه
أزكــى
الصــلاة
مســلّما
|
علـى
أشـرف
المخلـوق
قـدرا
وأعظم
|
نــبيّ
لــه
وصــف
النبــوة
ثـابت
|
وآدم
بيـن
المـاء
والطيـن
فـافهم
|
محمّـد
مـن
قـد
أظهـر
اللّـه
دينـه
|
بمكّـة
ذي
الـبيت
العـتيق
المعظّـم
|
وأعلاهُ
بالأنصـــار
إذ
حــلّ
طيبــة
|
فحيّـــا
بــوجه
مشــرق
ذي
تبســّم
|
ومــا
زال
محـروس
الجنـاب
مؤيّـدا
|
بكـــلّ
إمــام
بــالعلا
ذي
تهمّــم
|
محوطــاً
إلـى
أن
آل
تـدبير
أمـره
|
وحفــظ
حمــاه
بـالخميس
العرمـرم
|
لحــيّ
حلال
يعصــم
النــاس
أمرهـم
|
إذا
طرقـت
إحـدى
الليـالي
بمعظـم
|
كــرام
فلا
ذو
الضـغن
يـدرك
تبلـه
|
لـديهم
ولا
الجـاني
عليهـم
بمسـلم
|
ملــوك
بنـي
عثمـان
سلسـلة
العلا
|
غصـون
نمـت
غـذ
فرّعـت
مـن
غطمطـم
|
فللّـه
مـا
قـد
شـيّدوا
مـن
بنـائه
|
ومـا
هـدموا
للكفـر
مـن
كـل
معلم
|
لقـد
أحكموا
أمر
الجهاد
بما
أتوا
|
بـأعظم
صـنع
فيـه
مـن
بعـد
أعظـم
|
فكــان
لهــم
واللّــه
يكلأ
مجـدهم
|
بمـا
فعلـوا
حقّـا
علـى
كـل
مسـلم
|
وقـد
رمت
في
ذا
النظم
جمع
ملوكهم
|
وجمــع
مزايــاهم
لــتروى
فتعلـم
|
فــأوّلهم
عثمــان
بــاكورة
العلا
|
مـذيق
الـردى
مـن
بأسـه
كـلّ
مجرم
|
لـه
فتحـت
بورسـا
فاضـحت
سـريرهم
|
فكـان
لهـا
فـي
ذاك
فضـل
التقـدّم
|
وثـانيهم
أرخـان
مـن
قـد
أتـت
به
|
كريمــة
مـن
صـلب
الـوليّ
المعظّـم
|
شــجاعتهُ
قــد
أظهرتهــا
حروبــه
|
فعنــه
بمــا
تختـار
فيهـا
تكلّـم
|
وثــالثهُم
مــن
نـال
فضـل
شـهادة
|
مــراد
محلـي
القـرن
حمـزة
عنـدم
|
فـذاك
الـذي
قـد
فـضّ
ختـم
أدرنـة
|
فـذاقت
بـه
بـرد
الهنـا
والتنعّـم
|
ورابعهــم
شــمس
العلا
بايزيــدهم
|
مــواقفه
فــي
الحـرب
مـرّة
مطعـم
|
لئن
كـان
مع
تيمور
ما
أنفذ
القضا
|
فـإنّ
ارتكـاب
الغـدر
منشا
التثلّم
|
ولا
عجــب
للأســد
إن
ظفــرت
بهــا
|
كلاب
الأعــادي
مــن
فصــيح
وأعجـم
|
فحربــة
وحشـيّ
سـقت
حمـزة
الـردى
|
وحتـف
علـيّ
مـن
حسـام
ابـن
ملجـم
|
وخامســهم
فخــر
الملــوك
محمــد
|
مجــدّد
هـذا
الملـك
بعـد
التصـرّم
|
وسادسـهم
ثـاني
المراديـن
من
رقى
|
مــن
العــزّ
مرقـى
لا
ينـال
بسـلّم
|
تخلّـى
عـن
الأمـر
اختيـاراً
لشـبله
|
وعــاد
مجــبر
الحـال
خـوف
تـألّم
|
وســابعهم
فحــل
الفحــول
محمّــد
|
لــه
فتــح
اسـطنبول
أشـرف
مغنـم
|
عقيلــةٌ
عــن
صـيد
الملـوك
تمنّـت
|
وكلّهـــم
فــي
وصــلها
ذو
تهمّــم
|
لقـد
جاءهـا
يختال
في
العزّ
مودعا
|
خبايـا
المنايـا
عنـد
جيـشٍ
عرمرم
|
لــدى
أســد
شــاكي
السـلاح
مقـذف
|
لــه
لبــدٌ
أظفــاره
لــم
تقلّــم
|
فزحـزح
عنهـا
سـيّد
الـروم
خاسـئا
|
لـدى
حيـث
ألقـت
رحلهـا
أمّ
قشـعم
|
وحــلّ
بهــا
لمّــا
تنـاءت
جنـوده
|
بتكــبير
منشـي
العـالمين
ومعـدم
|
وقـد
وسـم
السيف
العدى
في
رؤوسهم
|
كـــأنهم
قـــد
حصــّبوها
بعظلــم
|
فمـا
الحـرب
إلا
مـا
رأوا
من
بلائه
|
ومـا
هـو
عنهـا
بالحـديث
المرخّـم
|
وثــامنهم
فــرعٌ
لهــم
بايزيـدهم
|
أخـو
الجـود
مـن
ذا
سـدّ
خلّة
معدم
|
وتاســعهم
مفتــاح
فتــح
ممالــك
|
غـدت
فـي
جـبين
الـدهر
غـرّة
أدهم
|
سـليم
الـذي
قـد
حـلّ
بالشاه
بأسه
|
فأدبر
يطوي
الأرض
من
قرب
جهضم
كذا
|
ولاح
بتـــبريز
ســـناه
فأصـــبحت
|
عروســا
تجلّــت
فـي
وشـاح
منمنـم
|
ومـن
برقـت
بالشـام
أنـوار
برقـه
|
دعتــه
دعــاء
البــائس
المتظلـم
|
فســـكّن
منهـــا
روعــة
بقــدومه
|
وضــمّت
عليــه
ســورها
ضـمّ
معصـم
|
وواجــه
مصــر
بالــذى
ذ
تلكّــأت
|
فــأجرى
بهــا
نيلا
تــدفق
بالـدم
|
وقــد
غرّهـا
الغـوي
فغـار
بـدافق
|
وأقبـــل
طومــان
كــذئب
لضــيغم
|
فأصــبح
مطلوبــا
ببــاب
زويلــة
|
يــداس
بأقــدام
ويوطــأ
بمنســم
|
ولـم
يبـق
مـن
أبنـاء
جركـس
ناعقٌ
|
كــأنهم
قــد
لامســوا
عطـر
منشـم
|
وأضــحى
ســليم
للمقـامين
خادمـا
|
بــذاك
ينــادي
للســلاطين
خــدّمي
|
وعاشـرهم
ذو
الرأي
والبأس
والندا
|
سـليمانُ
جـرّاع
العـدى
كـاس
علقـم
|
قـد
انتظمـت
بغـداد
فـي
سلك
ملكه
|
فصـار
لـه
أمـر
العراقيـن
ينتمـي
|
وقـــد
ظهــرت
آثــاره
بحــديثها
|
حـداة
الـورى
تحـدو
بـه
كـلّ
موسم
|
فمنهــا
ويــا
للّــه
غــزوة
رودس
|
تغنّــي
بهــا
طيــر
الفلا
بــترنم
|
وفــي
سـكتوار
بعـد
أن
فتحـت
لـه
|
أجــاب
إلـى
المـولى
بقلـب
مسـلّم
|
فلاحــت
بـأفق
الملـك
طلعـة
شـبله
|
ســليمن
عظيـم
القـدر
فـرع
معظّـم
|
لهمّتــه
العليــا
قــبرص
أذعنــت
|
تقابـــل
مســـعاه
بــوجه
مغشــّم
|
وفــي
يمـن
مـن
بعـد
بـدء
فتـوحه
|
لواحـــد
الأرض
اتـــى
بـــالمتمّم
|
وأحيـا
بـه
الرحمـان
تـونس
عندما
|
غــدت
بعــد
عـزّ
شـامخ
فـي
تحطّـم
|
فشـــدّ
بضــبعي
ســعدها
فأقــامه
|
وكــان
بقهــر
الأسـر
صـاحب
محتـم
|
ومـن
بعـده
قـد
بـايع
الناس
فرعه
|
مـرادا
كريـم
النفـس
وابـن
مكـرّم
|
ويتلــوه
فـي
دسـت
الإمامـة
شـبله
|
محمـد
مغضـي
الطـرف
عـن
فعل
مأتم
|
أقـام
على
أغرى
كذا
فأبدى
بأفقها
|
ســحائب
حــرب
أمطــرت
كـلّ
لهـزم
|
وغفّــر
للرحمــان
فـي
الأرض
وجهـه
|
فئاب
بفتـــح
للطـــواغيت
مرغــم
|
وقـام
ابنـه
ذو
الحسـن
أحمد
بعده
|
يحــيّ
ببــدر
تحــت
تــاج
منظّــم
|
ومـن
بعـد
هـذا
مصـطفى
بـن
محمّـد
|
أقيــم
ولكــنّ
عقــده
غيـر
مـبرم
|
فبويــع
عثمــان
بـن
أحمـد
بعـده
|
وأنــزل
عــن
قــرب
لأمــر
محتّــم
|
وقـد
عـاد
بعد
الخلع
خاقان
مصطفى
|
وأنـزل
بعـد
العـود
مثـل
المقـدّم
|
فجــاء
مــراد
نجــل
أحمـد
بعـده
|
فكـــان
كعلـــم
لاح
إثــر
تــوهّم
|
أطــلّ
علــى
دار
الســلام
بجيشــه
|
فأنقـــذها
مـــن
رافضــيّ
مــذمّم
|
وقــد
لبســت
مــا
زانهـا
لمسـرّة
|
وألقـت
بمـا
قـد
شان
من
ثوب
مأتم
|
وعــادت
إلــى
عاداتهـا
دار
سـنّة
|
تجــرّرُ
أذيــال
انهــى
والتنعّــم
|
وقـد
قـام
إبراهيـم
وهو
ابن
أحمد
|
فللّــه
مــن
حــزم
وحســن
توســّم
|
بعنويّــة
منــه
وقـد
جـاس
أرضـها
|
بأســياف
أجنــاد
لـه
نهـش
أرقـم
|
أقــاموه
عــن
كرســيّه
وتقــدّموا
|
لمـن
هـو
فـي
عهـد
الصبا
والتنعّم
|
محمــد
فـرع
منـه
فانصـدع
البنـا
|
وهــبّ
مــن
الكفــار
كــل
تضــرّم
|
ولكنّـــه
لمــا
تكامــل
واســتوى
|
بــدا
منـه
حـزم
فاضـح
كـل
أحـزم
|
فتمّــم
فتحــا
كــان
ســنّه
والـدٌ
|
بكنديّــة
أعظــم
بــه
مــن
متمّـم
|
وناهيــك
مــن
فتـح
يضـيق
بيـانه
|
عـن
النظـم
فـانظر
للتواريخ
تعلم
|
ومـن
بعـد
هـذا
تـم
بـالخلع
أمره
|
فيالــك
مــن
فعــل
قبيــح
مـذمّم
|
فقـــام
ســليمان
أخــوه
مقــامه
|
ولـم
يـأل
جهـدا
فـي
صـلاح
المحطّم
|
ومـن
بعـده
قـد
قـام
أحمـد
صـنوه
|
فبــانت
جــراح
لا
تــداوى
بمرهـم
|
وأعقــب
هــذا
مصــطفى
بـن
محمّـد
|
وأخــر
عمــا
نــاله
مــن
تقــدّم
|
فقــام
أخــوه
أحمــد
بعـد
خلعـه
|
وســلم
لمّــا
شــام
بـرق
التـألم
|
وقــد
فتحـت
تـبريز
قهـرا
ومـورة
|
بأيّــامه
وجــه
الزمــان
المطهّـم
|
فبويــع
للســلطان
محمــود
بعـده
|
هــو
ابـن
أخيـه
مصـطفى
المتقـدّم
|
ومـن
بعـده
قـد
قـام
عثمـان
صنوه
|
ومـن
بعـد
هـذا
مصـطفى
ذو
التقدّم
|
إلـى
الموسـكو
إذ
وجّه
العزم
نحوه
|
وجــرّد
فــي
حــرب
لـه
كـل
أصـرم
|
ومـن
بعـده
عبـد
الحميـد
إمامنـا
|
أخــوه
عظيــم
مــن
عظيــم
مفخّـم
|
أبــان
لـه
اللّـه
الهـدى
وأنـاله
|
رشــادا
وتسـديداً
لـدى
كـل
مهمـم
|
فهــاك
ســلاطين
الزمــان
جمعتهـم
|
بنظــم
كســمط
بــاللئالي
منظّــم
|
وعــدّتهم
ســبع
وعشـرون
قـد
غـدت
|
ســماء
العلا
منهــم
تضـيء
بـأنجم
|
ودولتهــم
خمــس
الهنيـدات
عمّـرت
|
وفـي
طـول
هـذا
العمر
لم
تك
تهرم
|
وذا
فـي
ثمـان
بعـد
تسـعين
ضـمّها
|
إلـى
مـائة
مـن
بعـدها
ألـف
تعلم
|
وناظمهــا
العبــد
الفقيـر
محمّـد
|
أقـلّ
الـورى
المشـهور
فيهم
ببيرم
|
يقـول
تنـاديني
المعـالي
بقولهـا
|
إليـك
الـذي
قد
قلت
فيهم
به
اختم
|
أيـا
دولـة
أربـت
علـى
كـل
سـابق
|
عليهـا
لعـزّ
الـدين
والملّة
اسلمي
|
وقـد
سـلمت
حتّـى
رأت
فـي
سـريرها
|
همامـا
بـه
الـدين
الحنيفيّ
يحتمي
|
سـليم
نـن
خاقـان
الخواقين
مصطفى
|
لـه
فتـح
مصـر
قـد
غـدا
خير
مغنم
|
لــه
حصـلت
مـن
بعـد
هـذا
شـهادة
|
بهـا
نـال
في
الفردوس
طيب
التنعّم
|
كمــا
حصـلت
مـن
بعـده
لابـن
عمّـه
|
وذا
مصــطفى
فــادع
لـه
بـالترحم
|
تلاه
إمــام
العصــر
محمـود
صـنوه
|
جليــل
عظيــم
مــن
جليــل
معظّـم
|
أطـل
يا
إلاه
العرش
في
الخير
عمره
|
وصــنه
لحفــظ
الـدين
ربّـا
وسـلم
|
ولا
زال
هـذا
الـبيت
للـدين
قائما
|
إلـى
زمـن
المهـديّ
عيسى
ابن
مريم
|