عسـى
فـرج
من
المولى
القريب
|
يـداركني
بـه
اللـه
عن
قريب
|
ويشـرح
صـدري
المشـحون
ضيقا
|
بمحـض
الجـود
والفضل
الرحيب
|
وتنــزاح
الهمـوم
وكـل
كـرب
|
ويـأتي
الفتـح
فـي
لطف
عجيب
|
عسـى
الوهـاب
يعطينـي
رجائي
|
وأزيــد
منــه
مـن
رب
مجيـب
|
فــإن
اللــه
ذوفضــل
قـدير
|
فكـم
سـلى
عـن
القلب
الكئيب
|
فيـا
أملـي
ومـأمولي
ومـالي
|
ويـاذخري
وفخـري
يـا
نصـيبي
|
وياربــاه
ياغوثــاه
يــامن
|
إليــه
مشـتكائي
مـع
نحيـبي
|
تــداركني
تــداركني
تـدارك
|
تــداركني
تــداركني
حبيـبي
|
فقـد
ضـاق
الخناق
وضقت
ذرعا
|
ومـالي
غيـر
جـودك
مـن
طبيب
|
فهـب
لـي
ثم
هب
لي
ثم
هب
لي
|
وبــرد
مــابقلبي
مـن
لهيـب
|
ولـي
أمـل
ولـي
رجـوى
عظيـم
|
ومــاربي
تعــالى
بــالمخيب
|
تعــالى
اللـه
خلاق
البرايـا
|
تعـالى
اللـه
عن
قول
الكذوب
|
فكــم
جــادوكم
فـادو
أعطـى
|
وكـم
غطـى
علـى
عيـب
المعيب
|
فـإلى
غيـر
عفـوك
مـن
مجيـر
|
ومـالي
غيـر
جـودك
مـن
مجيب
|
فعـاملني
بفضـلك
فـي
شـؤوني
|
وقــابلني
بغفــران
الـذنوب
|
وجـد
يـا
حي
يا
قيوم
ياالله
|
علـى
عبـدك
بتفريـج
الكـروب
|
فـأنت
المرتجـى
فـي
كـل
حال
|
اليـك
الملتجـا
عنـد
الشغوب
|
عســى
فـرج
عسـى
فـرج
قريـب
|
عســى
فـرج
قريـب
مـن
قريـب
|
بـه
الإسـلام
يمسـي
فـي
أمـان
|
وفــي
أمـن
وفـي
يمـن
عجيـب
|
وتنـزاح
المظـالم
والمخـاوف
|
مـع
العـدوان
والبغي
الشغيب
|
وحكم
الشرع
نافذ
في
البرايا
|
وحكـم
الجبـت
مـاله
من
نصيب
|
ويمسـي
كـل
مسـلم
فـي
سـرور
|
وفـي
شـكر
علـى
نعـم
الرقيب
|
ومــا
ذاك
علـى
اللـه
عزيـز
|
ومـا
ذاك
مـن
اللـه
بالغريب
|
تعـالى
اللـه
عـن
بخـل
وعجز
|
وجـل
اللـه
عـن
كـل
العيـوب
|
ســألتك
بــالنبي
طـه
محمـد
|
وكــل
الانبيـا
تكفـي
شـغوبي
|
وبالأصــــحاب
أجمعهـــم
وآل
|
وكــل
الأوليـا
أهـل
القلـوب
|
بزيــن
العابـدين
مـع
محمـد
|
وجعفـر
مـع
علـى
مـط
كروبـي
|
محمــد
بـن
علـي
ثـم
بعيسـى
|
باحمــد
لا
تــدعني
للخطــوب
|
بعبـدالله
مـع
علـوي
وبصـري
|
جديــد
مـع
محمـد
نـق
جيـبي
|
بعلــوي
مـع
علـي
مـع
محمـد
|
وأولاده
بــــاعلوي
الأديـــب
|
بنـور
الـدين
مـع
نجله
محمد
|
وســقاف
العلا
أطفىـء
لهيـبي
|
وأولاده
جميعهـــــــم
وأولاد
|
أبــي
بكـر
تـداركني
حبيـبي
|
بــأولاد
العفيــف
مـع
وجيـه
|
واخــوته
بهــم
وفـر
نصـيبي
|
بصــاحب
روغـة
وبـابن
بصـرى
|
بحـداد
القلـوب
أصـلح
قليبي
|
بصــاحب
وادعيديــد
باحمــد
|
بباجحــدب
دعـوه
كـن
طبيـبي
|
وبالشـيخ
ابـن
سالم
مع
بنيه
|
وبالحبشـي
وبـالجيلي
المنيب
|
بحــدي
طــاهر
طهــر
فـؤادي
|
مــن
الأرجـاس
مـن
شـك
وريـب
|
بغـــزال
العلــوم
بشــافعي
|
وبالشـاذلي
ربـي
اغفر
ذنوبي
|
بســعدون
بســالم
بــن
فضـل
|
علـي
بـن
محمد
القطب
الخطيب
|
بكـل
الصـالحين
بكـل
مـؤمن
|
بكتبــك
بــالملائك
بـالكروب
|
بهـم
ندعوك
يا
مولى
الموالي
|
بهـم
نـدعوك
يـا
أحسـن
مجيب
|
باحســانك
بغفرانــك
ومنــك
|
بافضــلك
وبــالجود
الرحيـب
|
نهـب
لـي
مـا
أرجيـه
وأزيـد
|
وتــدركني
بتفريــج
الكـروب
|
وكـن
لـي
سـيدي
فـي
كـل
حال
|
ولارب
تـــــدعني
للخطــــوب
|
ووفقنــي
لمــا
يرضـيك
عنـي
|
وألهمنــي
لشــركالاك
دوبــي
|
وياحنـــان
يامنــان
يــامن
|
لـه
الإحسـان
فـي
حال
الجدوب
|
ويـارحمن
يـا
ذا
الشان
سالك
|
غياثـا
عـاجلا
يطفـي
لهيـبي
|
وأختـم
لي
بخير
الختم
ان
حا
|
ن
حيـن
الحيـن
فـي
لطف
عجيب
|
وأدخلنــا
جنــاك
فـي
أمـان
|
بلا
خـــوف
ولا
أمـــر
تعيــب
|
ولا
فـــزع
ولا
جـــزع
وضـــر
|
ولا
بلـــوى
ولا
هـــم
شــغيب
|
وسـلمنا
مـن
النيـران
واحفظ
|
لنـا
الإيمـان
واغفـر
كل
حوب
|
فعمـري
قـد
تقضـى
فـي
شـرور
|
وفـي
زور
وفـي
كسـب
الـذنوب
|
وفـي
نسـيان
للمـولى
تعـالى
|
وللاخــرى
وللمــوت
المهيــب
|
ولكــن
رحمــة
اللـه
تسـعني
|
وعفـوالله
أعظـم
مـن
عيـوبي
|
وصــلى
اللـه
ربـي
كـل
حيـن
|
وسـلم
مـا
جـرت
ريـح
الجنوب
|
علـى
طـه
المشفع
في
البرايا
|
وآلـه
والصـحاب
أهـل
القلوب
|
وكــل
التـابعين
وكـل
مـؤمن
|
عـدد
ذر
الرمـال
مـع
الحبوب
|
ومــا
نــاداك
ذوكـرب
فقـال
|
عسـى
فـرج
من
المولى
القريب
|